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________________ ( २३६ ) सवारिख-तीर्थ-राजगृही. फाल्गुन वदी ( १२ ) के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा. इंद्रदेवने वगेरा उनकी खिदमतमें-आतेथे,___ तीर्थंकर महावीरस्वामीने यहां (१४) चौमासे किये. महाराज प्रसेनजित इसीराजगृहीके राजाथे. जो राजा श्रेणिकके वालिदथे महाराज प्रसेनजितकों औरभी कइ लडकेथे, एक वख्तकी बातहै तमाम लडकोंकों हुकम दियाकि-तुम-आयुधशालामें जाओ ! और एकएक चीज-जो-तुमारे दिल पसंदहो-उठालाओ, तमाम लडकोने अपने दिल के मुताविक एकएक चीज उठाइ किसीने हीरा-जवाहि गत-और किसीने मोती वगेरा उठाया, और अपने वालिदके सामने आये. श्रेणिक लडकेने एक विभीसार नामकी भेरीउठाइ और अपने वालिदके सामने लाया, महाराज प्रसेनजितने पुछा यह भेरी क्यौं लाया ! श्रेणिकने बडी होशियारीके शाथ जवाव दियाकिजहां-मेरे नामकी भेरीबजेगी वहांही मेरा राज्यहोगा, उसके वालिदने अपने दीलमें ख्यालकीयाकि लाइक तख्तके यही है, मगर जाहिरातमें उसपर नाराजी इस गरजसे बतलातेथेकि-कोइ-रानीया-नोकर चाकर इसकों मार-न-डाले, इधर श्रेणिक अपने वालिदके खयालात देखकर जैसा समझ गयाकि-मरे वालिद मुजसे नाराजहै-मुजे- लाजिमहै-में-कहीं दुसरे शहरमें चलांजाउ. गरजकि-राजगृही छोडकर चलागया. जब वालिदका अखीर वख्त आया-उसवख्त उनाने श्रेणिकको यादकिया, दिवान वगेरासे कहा इसको ढूंढलाओ ! और राजगृहीके तख्तपर बिठाओ ! ! नोकर चाकर लोग इनकी तलाश करके लाये और बाद प्रसेनजितके उनकों तख्तपर बेठाये, तीर्थकर महावीर स्वामीके जमानेमें राजगृहोके तख्तपर श्रेणिकराजा राज्य करताथा, पेस्तर दिगर मजहबपर इसका एतकात था मगर जब तीर्थंकर महावीर स्वामीको धर्मतालीम पाइ उसका एतकात जैनमजहबपर पावंदहुवा, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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