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तवारिख-तीर्थ-राजगृही. ( २३७ ) तीर्थकर महावीर स्वामीके ग्यारह गणधरोने यहां मुक्तिपाइ, जंबुस्वामी-एकबडे कामील शख्श जिनकेघर करोडो रूपयोंकी दौलतथी-और-जिनके आठऔरतें बडीकमालहुस्न-और-खूबमुरतथी-छोडकर उनोने यहां दीक्षा इख्तियारकिइ, धन्ना-औरशालिभद्रजी-इसी राजगृहोके रहनेवालेथे. जिनकेघर अजहद दौलतथी उनोनेभी यहांदीक्षा इख्तियारकिइ, अगर धर्म-प्यारा-नहोतातो असा कौनकरता !-शव्यंभवमूरि इसी राजगृहीमें जैनाचार्योकी धर्मतालीमसे जैनहुवे, बडीबडी नायाव--और-अजुवा बातें-यहां होचुकी है. राजा श्रेणिकके कइरानीयां और लडकेथे, जिनमें अभयकुमार एकलायक और अकलमंद शख्शथा. और वही उनका दिवानथा, जब उसने दुनियाछोडकर दीक्षा इख्तियार किइ, कौणिक नामका लडका जोकि-बडाजाहिलथा-राज्यकी लालचसे अपने वालिद श्रेणीककों केदकरके आप राजगृहीके तख्त परवेठा, अभयकुमार अगर दुनियादारी हालतमें मौजूदहोतातो कोणकी ताकत न--होतीकि--अपनेजइफ वालिदकों केदकरसकता. राजाश्रेणिक जइफीहालतमें होहीगयेथे, केदमेंही उनका इंतकाल हुवा, राजगृहीके वाशिंदे कौणिकपर बहुतनाराजहुवे, और कहने लगे जिसने अपने वालिदकों केदकिया-वह-हमारेशाथ कयासलुककरेगा ? श्रेणिक जैसे राजा और अभयकुमार जैसे दिवानहोना दुसवारहै, राजाश्रेणिकके मरनेपर कौणिकने राजगृही छोडकर चंपानगरी में रहना इख्तियार किया, हल्ल-विहल्लकुमार जो कौणिकके छोटेभाइथे, उनकेशाथभी उसने नेकी नहीकिइ, गरजकि-कोणिकने अपनी तमामउमर झगडेबखेडेमेंही खतमकिइ, आखीरकार तीर्थकर महावीरस्वामीकी नसीहतसें कुछजैनधर्मपर एतकातलाया था-मगर वसवबजइफीके ज्यादह धर्मनही करसका. उसकी वफातकेबाद उसका बेटा उदायि-उसकी जगइपर-तख्तनशीनहुवा,
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