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तवारिख-तीर्थ-राजगृही... ( २३५ .) गुणायाजी-पावापुरी-राजगृही--कुंडलपुर--और--सूबेविहार-ये-- पंचतीर्थीके नामहै, और सूबेविहार-रैलका टेशनहै, जो यात्री मूबेविहार टेशन उतरकर पंचतीर्थीकी जियारत करना चाहे-उनको तीनकोसपर अवल कुंडलपुर जानाचाहिये, कुंडलपुरसे (४) कोश राजगृही-राजगृहीसें (५) कोश पावापुरी और पावापुरीसे (६) कोश गुणायाजी-और गुणायाजीसे करीब (१) कोशपर कस्वा नवादाहै. जोकोइ यात्री नवादा टेशन उतरकर पंचनीर्थी करनाचाहे तो अवल गुणायाजीकी जियारतकरे, गुणायाजीसें पावापुरी, पावापुरीसे राजगृही-राजगृहीसे कुंडलपुर और कुंडलपुरसे मूवेविहार जावे, जिनकी जैसीमरजीहो-वैसाकरै,
जोकोइ यात्री नवादा टेशन उतरकर पंचतीर्थीकी जियारतकरे और वापिस नवादा आवे तोभी बनसकताहै, नवादासे अवल राजगृही जाय,
[ तवारिख तीर्थ राजगृही, 1 • मुल्क मगधकी राजधानी राजगृही नगरी पेस्तर बडीरवनक परथी, क्षितिप्रतिष्टित नगर-रिषभपुर--कुशाग्रपुर-ये-सबइसीके नामहै. बीसमें तीर्थकर मुनिमुव्रतस्वामी इसी राजगृहीमें पैदाहुवे,मुमित्रराजाके घर पदमावती रानीकी कुखसे ज्येष्टवदी (८) मी अषण नक्षत्रके रोज उनका यहां जन्महुवा. बहुत अर्सेतक उनोने राजगृहीपर अमलदारी फिइ. दीक्षा लेनेके पेस्तर एकसालनक उनोने यहां बहुत खैरात किड, फाल्गुन मुदी ( १२) के रौज दुनीयाके एस-आराम-छोड़कर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार किड, ग्यारह महीने छदमस्थ हालतमें रहे, यानी तपकिया, और
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