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संवाने-उमरी. (९) __ महाराजके दीक्षालग्नमें लग्नकामालिक बुधकेंद्र पडाहै इसलिये ज्ञानदर्शन चारित्रका फायदा हासिल होतारहेगा, और धर्मके काममें फतेहमंद रहेगे, आफताबका सितारा ग्यारहमें खानेमें पडाहै इसलिये किसी चीजकी कमी-न-रहेगी, अकल तेज रहेगी. और बडीबडी सभाओमें इज्जित पायगे. चमकताहुवा मंगलका सितारा नवखानेमें वेठाहै इसलिये यह बड़ा फायदेमंद होगा, चंद्रमानवमे खानेकों अपनी माकुल नजरसें देखताहै, वृहस्पति उसी नवमेखानेमें बेठाहै, और शुक्र-उस-नवमेंखानेकों एक नजरसे देखताहै, इसलिये इनका धर्मभुवन बहुत सुधराहुवाहै, धर्मपर बहुत पुख्ता एतकात बनारहेगा, कइ ग्रंथ धर्मकेबारेमें बनायगें. और इनकी लिखीहुइ बातकों बहुतलोग पसंद करेंगे. बुध और शनिके सितारे केंद्र होनेसे और मंगल-वृहस्पति त्रिकोणमेहोनेकी वजहसे हमेशा अपने साधुपनेमें खुश रहेगें, बारहमेंखानेमें शुक्रका सितारा अपने घरका मालिकहोकर बेठाहै इसलिये धर्मके कामोमे और मजहबी बहेसमें हमेशां फतेह पातेरहेगे. और इनकेआगे एकनिशान बतौर धजापताकाके चलेगा, जिसशख्शके लग्नका मालिक भाग्यके मालिकको-और-भाग्यका मालिक लग्नकेमालिकको पुरीतौरसे देखताहो-उसको दीक्षा जरुर हासिलहो, महाराजके दीक्षालग्नमें वही योग पडाहै इसलिये दीक्षा हासिलहुइ. और हमेशां इनका दिल धर्मपरपावंद रहेगा. मगर मंगलका सितारा नवमेंखानेमें पडनेसें इ. नकों अपने गुरुभाइयोसे नाइत्तिफाकी बनीरहेगी. जिस शख्शके लग्नमे नवमेंखानेका मालिक दसमेंखानेमेंपडाहो-और-दसमेखानेका मालिक नवमेखानेमे पडाहो-उसकों हमेशां राजयोग बनारहे. महाराजके दीक्षालग्नमें देखलो ! वैसाही योग पडाहै, जिसकीवदौलत महाराज अपने साधुपनेमें बतौर राजर्षिक बनेरहेगें, और-बडेबडे
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