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तवारिख-तीर्थ-गिरनार. [अनुष्टुप-वृत्तम् ]
न-स-वृक्षो-न-सा-वल्ली-न-तत्पुष्पं-न-तत्फलं, नेक्षतेत्राभियुक्तैर्यत्-इत्येतिह्यविदो विदुः,
ज्ञानशिला-छत्रशिला-और-अंजनशिला-वगेरा कइशिलाध्यानसमाधिकेलिये यहांपरमशहूरथी. मगरआजकल-वे-नामांतर होजानेकीवजहसे पहिचाननेमेंनहीआती. वेगवतीऔर ज्ञानशिलाके निचेऐसीमीटीहोतीथीकि-अगरतरकीबकेसाथ उसकोपकाइजाय-तो सोनाहोजाताथा, मगरजमानेहालमें वहतरकीब-और-उसमीटीकों पहिचाननेवाले नहीरहे, पेस्तरजो-किमियागिरिका इल्मथा-वहझुठानहीथा, वेशक ! आजकलइस इल्मकेजाननेवालेनहीरहे, गिरनारपहाड आजकलभी तरहतरहकी वनस्पति और चीस्मेआबसेतरब-तरहै, आवहवायहांकी साफऔरउमदा-गिरनारपहाडकी सीढियां-जोकि-राजाकुमारपालके कोतवालनेवनवाइथी पुरानीहोजानेकी वजहसे यात्रीकों चढनेकी तकलीफथी, जैनश्वेतांबर संघने करीब अढाइलाखरुपये सर्फकरके वास्ते आरामके नयी सीढिये बनवाइ. जिससेंयात्री इनदिनों में बहुतआसानीसे आतेजाते है,
गिरनारपहाड बडेबडेजैनमंदिरोसें मुझयन-औरकाबीलेदीद है. तीर्थकरनेमनाथजीने इसपहाडपर ध्यानसमाधि करके मुक्ति पाइ, इंद्रदेवते उनकीखिदमतमें हानिररहतेथे. पेस्तरकेजमानेमें कइजंघाचारण-विद्याचारणमुनि इसपहाडपर कदमरंजा फरमाचुकेहै जिसके बडेभाग्यहो इसतीर्थकी जियारतकरे, रास्तेमें कइजगह उमदाबेठके
और-तरहतरहकीखुशबु मेहकरही है, तलहटीसेंकरीब ( २ ) मील तीर्थकर नेमनाथजीकी टोंकहोगी, अवलटोंकइसीकोंकहते है, यात्री
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