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________________ तवारिख तीर्थ - गिरनार. ( ८३ ) जैन श्वेतांबरधर्मशाला बनी हुइ - जिनमें - एकशेठ - प्रेमचंदरायचंदजीकी दूसरी फुलचंदभाइ - लख्तरवालोंकी दोनों धर्मशाला में करीब (५००) यात्री - व - खूबीठ हरसकते है, यात्रीकों यहां पर अगरखानपानकरनाहो करे. हाजत - व - शरीरे फारकहोकर बदनसाफ करे. औरपहाड पर जानेकी शुरुआत करे, शुरुमेंएक आलिशान दरवजावनाहुवा उसमेंहोकर सीढीके उपर कदम रखे, समुंदर के पानी गिरनारपहाड (३६७५ फुटऊंचा-औरइसका दुसरानाम रैवताचलभी है, तीर्थकर नेमनाथजीने इसीपहाडपर मुक्ति पाई. और उनके दिक्षा - केवलज्ञान-और-मुक्ति- ये तीन कल्याणकयहांहुवे. कृश्नवासुदेवने यहांपर तीर्थकरनेमनाथजीके बडे बड़े आलिशानमंदिर और मूर्त्तियें तख्तनशीन किवी, मगरतत्रदील जमाने की वजहसें - वे - मंदिर - और - मूर्तियें अब नही रही, कइराजेमहाराजकी सलतनतइस जमीनपरगुजरी जिनकानामनिशानभी पुरेपुरा नजर नही आता, कृश्नजीकेवडेभाइ बलभद्रजीका तामीर करवायाहुवा मंदिरभी इसपहाडपरथा, मगरवहभीनहीरहा, तीर्थंकरनेमनाथजीने इसीगिरनारपर सहस्राम्रवनमें दीक्षाइख्तियार किथी. वह जगह बडेबडेताज्जुब - और नायाबकी है, तरहतरह केमे वा जान - बनास्पति अनार - वा-नारंगी - यहां-व- कसरतके मौजूद है. परींदाजानवरमौर - तोते - चीडिया-मैना वगेरा हरकिस्म के हख्तापरक लोलेकर रहे है, चीस्मे - आब - मानदेबर्फ -सफेद और मीठा यहां पर जारी हैं, • गिरनारकी गुफायें मुल्कोंमेंमशहूर बडेबडे मुनिमहर्षियोंने यहां परध्यानसमाधिकि. सोने-चांदी - जवाहिरातकी खानें यहां परमौजूदथी. तरहतरहकी जडीबुटी औररसकुंपिका यहांपरकायमदायमथी मगर आजकल उनकेपहिचाननेवाले नही रहे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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