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________________ ( २०० ) तवारिख-तीर्थ-मथरा. भंडीरवन-खदीरवन-कामितवन-कोलवन-बहुलवन-और-महावन ये-(१२) वन यहांपर थे. इनमेंसे कइ मौजूदहै, कइनहीरहे, वृंदावन इसवख्त बहुत तरक्की परहै, जैनाचार्य आर्य रक्षितमूरि यहां तशरीफ लायेथे उसवख्त जैनोंकी आबादी यहां अछीथी. स्कंदिलाचार्य ने यहां जैनसंघको इकठाकरके जैनागमका अनुयोग प्रवायाथा, जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणने महानिशीथसूत्रका यहां अनुसंधान कियाथा, कृष्नजीकी जन्मभूमिहोनेसे वैश्नव संप्रदाय वाले-शहर मथराको बडा तीर्थ मानते है. उनकी संप्रदायके बहुत मंदिर और विश्रामघाट वगेरा कइ घाट यहां बनेहुवे है. चीना मुसाफिर-फाहियान-और-हवांक्तसांग जब हिंदुस्थानकी सफरकों आयेथे-उनोने अपने सफरनामेमें लिखाहै हमने मथराको देखा फाहियान अवल आयाथा, हवांक्तसांग ( २५० ) वर्षके बाद आया हवांक्तसांगने लिखाहै उसवख्त मथरामें ( २० ) बौद्धमठथे,-मथराजिलेमें बहुतेरे गांव--उपवन:-और--कुंजोसे घेरे हुवे है, जिलेकी खास फसल गेहु-जवार-बाजरा--कपास-औरउखहै. सन (१८९१ ) की मर्दुमशुमारीके वख्त खास शहर मथराकी मर्दुमशुमारी ( ६११९५ ) मनुष्योंकीथी, बडी बडी सडके बहुतेरे मंदिर और मकान-पथरके बनेहुवे है, बाजार लंबा चोडा और हरेक किसमकी चीजें यहां मिल सकती है, बडीवडी आलिशान इमारतें बागबगीचे-और दौलतमंद लोग यहां आबादहै. महोले घियामंडीमें एक जैनश्वेतांवर मंदिर बनाहुवाहै, थोडे वर्स पेस्तर जैनश्वेतांबर श्रावकोकी आवादीभीथी, मगर जमाने हालमे कमहोगइ, इसलिये इस मंदिरकी जेरनीगरानी लशकर गवालियर के जैनश्वेतांबर श्रावक लोगरखते है. इसमें मूलनायक तीर्थकर पार्श्वनाथ भगवानकी मूर्ति-निहायत खूबसुरत एक विलस्तवडी तख्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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