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________________ तवारिख - तीर्थ-मथरा. ( १९९ ) दमी बखूबी कयाम करसकते है, इसकों बनेबहुत अर्सा होगया इसकी मरम्मत होना दरकार है, -आगेका दरवजाभी मरम्मत होनेके काबिल है, इसतीर्थकी जेरनिगरानी लखनउके जैन श्वेतांवर श्रावक लोग करते है. मंदिरका खर्चा - और - पूजारीकी तनख्वाह वगेरा भी लखनउके श्रावक देते है, अगर कोई यात्री अपनी दौलत खर्च करना चाहे ऐसे तीर्थ में करे, तुमने अकसर कइदफे देहली आगरेकी सफरकि होगी मगर कंपिलपुर तीर्थकी जियारत नही कि डेअपशोसकी बात है, खेर ! अबभी खयाल रखो, जिसके बडेभा हो ऐसे तीर्थकी जियारत करे, कंपिलपुरकी जियारत करके यात्री कायमगंज वापिस आवे, और कायमगंज से रैलमें सवार होकर हाथरस रोड आवे, रैलकिराया पेस्तर लिखचुके है, हाथरसरोडसे मेंडु - हाथरस सीटी - मुरसान - राया - मथुरा केन्टोन्मेन्ट होते मथरा सीटी उतरे, रैलकिराया चारआने, - ( तवारिख - तीर्थ - मथरा . ) पश्चिमोत्तर प्रदेश आगरा विभाग में जमनाके दाहने कनारे जिलेका सदर मुकाम मथरा एक पुराना शहर है. जैनशास्त्रोंमें इसके आसपासकी जमीनको सुरसेन देश लिखा है, तीर्थंकर सुपार्श्वना थजी वख्त यहां बहुतसे जैनमंदिरथे, यादव कुल दिवाकरसमुद्र विजयजी - उग्रसेनजी - और - वसुदेवजी वगेरा दशदशावरवीर पुरूष इसी मथुरा में हुवे, कृष्न वासुदेव और उनके बडे भाइ बलभद्रजी यहांही पैदाहुवे जो दुनिया में बडे नामी ग्रामी और मशहूर कहलाये. १ - अर्कस्थल, २ - चीरस्थल, ३ - पदमस्थल, ४- कुरूस्थल, और-५-महास्थल येपांच यहां पेस्तर बडेबडे स्थलथे, - लोहजंघवन - मधुवन-छिल्लवन -- तालवन - कुमुदवन-वृंदावन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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