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________________ तवारिख-तीर्थ-मथरा. (२०१ ) नशीनहै, बायीतर्फ एक पुरानी मूर्ति जोकरीव देढहाथबडी है दर्शन करके दिल खुशहोगा, मथराके बहार थोडी दूरपर जो जैन टीला पुरानी जगहहै, कहतेहै यहां जैनोकी आबादी और मंदिरथे. मगर अब तमाम विरानहै, जब-सर-ए-कनिंगहाम साहबने-पुराने शिला लेखोंकी तलाश किइथी-तो-कइजगहसे पुराने लेखमिलेथे, एकलेखमें लिखाहै, सिद्धं० संवत् (२०) गृष्यरूतुका पहला महिना तिथि पुनमके रौज जयपालकी माता-वि-की-स्त्री-दत्तिलकी पुत्रीदत्ताने यहकीर्तिमान वर्द्धमान स्वामीकी मूर्ति चतुर्विध संधको अर्पण किइ. और कौटिक गछ-वाणिज्यकुल वज्रीशाखाके सीरी भागके आर्यसिंह-आचार्यने इसकी प्रतिष्टाकिइ, दुसरे लेखमें लिखाहै अरिहंतकों नमस्कार सिद्धकोनमस्कार संवत् (६०) उष्न रूतुका तिसरा महिना तिथि पंचमीके रौज यह स्थान उस समुदायके उपभोगकेलिये दियागया जिसमे चारवर्गका समावेश होताहै, दुसरा अर्थ यहभी निकलताहैकि-एकएक वर्गके लिये इसका एकएक हिस्सा देनेमें आयाथा, तीसरे लेखमे लिखाहै सिद्धं महाराज कनिष्कराज्यके संवत् ( ९० ) महिना पेहले तिथि पंचमीके रौज ब्रहमाकी पूत्री-भट्टि मित्रकी स्त्री-विकटाने सब जीवोंके फायदेके वास्ते-यहकीर्ति मान वर्द्धमानकी प्रतिमा बनवाइ. इसकी प्रतिष्टा कौटिकगण-वाणिज्यकुल-और-वयरी शाखाके आचार्य नागनंदीने किइ, चोथैलेखका पुरेपुरा समाधान मिलना मुश्किलहै लेकिन ! अवलपंक्तिके एकटुकडेकेदेखनेसे मालूम होताहैकि-यह अपर्णकरनेका काम एकत्रीसे हुवाथा-और वह अमुक पुरूषकी-स्त्री तरीके लिखने में आइथी. दूसरीपंक्तिमें कौटिक गगतः प्रश्नवाहनतः कुलतो मध्यमातः शाखातः लिखाहै, पांचमें लेखका मतलब यहहैकि-वर्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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