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( २४४ ) नवारिख तीर्थ - राजगृही
पांचवेमंदिरसे आगे आधमीलके फासलेपर है, इसमें तीर्थकर महावीरस्वामीकीमूर्त्ति करीव (४) फुटबडी तख्तनशीन है - और एकतर्फ (११) गणधरोंके कदम जायेनशीन है, और उनपर लिखा है संवत् ( १८३० ) माघशुक्ल पंचमी शुक्रवारकेरौज ओशवालवंश-गहेलडा गोत्र - जगतशेठ - फतेचंदजी -- उनके बेटे आनंदचंद्रजी - उनके बेटे मेहताबरायजी - उनकी - शेठानी - शिंगारदेवीने - राजगृही के वैभारगिरि पहाडपर - - ( ११ ) गणधरोंके कदम तामीर करवाये, सातमामंदिर धन्ना -- शालिभद्रजीका इसमें धन्नाशालिभद्रजीकी मूर्ति - कायोत्सर्ग ध्यानमयखडे आकार करीब ( १ ) फुटवडी तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है संवत् (१५२४) आषाढ (१३) के रौज श्रीजिनचंद्रमरिमहाराजके उपदेश श्रीकमलसंयमोपाध्यायेने यहां धना - शालिभद्रजी की मूर्ति प्रतिष्टित कि, इसके नीचे जिसश्रावकने मंदिर बनवाया उसकानाम वगेरालिखा है मगर हफों के घीस जाने की वजह से उठ सकता नहीं, -
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वैभारगिरि पहाड बडेबडे अजायब और नायाब चीजोंकी जगह है, बडेबडे आलिम फाजिल जैनमुनियोंने यहांपर ध्यानसमा धि कि. हरेकयात्रीकों ऐसे तीर्थकी जियारत करना चाहिये. वैभारगिरि पहाड सब पहाडोंसे रवन्नकदार है तरहतरहकी किंमती जडीबूटीये यहां पर खडी है. पांचो पहाडके तमाम जैनमंदिरमें पूजारी- नोकर-चाकर खर्च आमदनी वगेरा श्वेतांबरसंघके मातहत हैं, और हरेकमंदिरपर मरम्मत होना दरकार है, वैभारगिरिसे उतरकर राजगृहीकों आना, पहाडकी दामनमें ( १३ ) कुंड पानीके भरेहुवे पके बंधे है, पांचो पहाडोका चढाव - उतार - करीब ( १२ ) कोशके पैरेमें होगा, जोकोइयात्री शुभहके सातबजे राजगृहीसे डोली में - या - पांवपेदल - जावे - वह जियारत करके शासकों वापिस आसकते है;
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