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( २८० ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. अषणगणधरायुतेशके ( १७६२ )-फाल्गुनांतिमदले-सुनागके (५) भार्गवे सितपटौघपालके वाणारस्यां श्रीमद्भगवत्सहस्रफणालंकृत श्रीपार्श्वनाथजिनमूर्तिः-क-से-उद्यचंद्रधर्मपत्नी-महाकुवराख्यया-मूलचंद्रसुतथुतया-वृहत्खरतरगणेश श्रीजिनहर्षगणि पदालंकृत श्रीजिनमहेंद्रसरिणा प्रतिष्टिता, यहमूर्ति बनारसमें बनाइगइ और मधुवनमें तख्तनशीन किइगइहै, __ आठवामंदिर मुपार्श्वनाथजीका-तामीरकियाहुवा पंचायती श्रावक विकानेरवालोका-इसमें मूर्ति सुपार्श्वनाथजीकी सफेदरंग करीब एक हाथवडी जायेनशीनहै, और उसपरलिखाहैकि-संवत् ( १९००) में यहमूर्ति तामीर किइगई,
नवमामंदिर गणधर-शुभस्वामीका-तामीरकियाहुवा-जैनश्वेतांबरसंघ-बालुचर-मुर्शिदाबादवालोंका इसमें मूर्तिपार्श्वनाथजीके गणधर शुभस्वामीकी करीव (१) हाथ बडी-साधुस्वरुपमें जायेनशीनहै, और उसपरलिखाहैकि-संवत् (१८९५) फाल्गुनशुक्लतृतीयायां-रवौ-श्रीपार्श्वनाथस्य-शुभस्वामी गणधरबिंबप्रतिष्टितं-जिन हर्षसरिभिः कारितंच बालुचरवास्तव्यश्री संघेन,
दसवामंदिर गोडीपार्श्वनाथजीका-तामीरकियाहुवा-बाबुप्रतापसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादका-इसमें मूर्ति गोडीपार्श्वनाथजीकी सफेद रंग-करीब एकहाथवडी जायेनशीनहै, और उसपर लिखाहैकि-संवत् (१८८८ )-माघशुक्लपंचम्यां चंद्रवासरे श्रीपावनाथ जिनबिंब-कारितं-ओशवंशे-दुगडगोत्रे प्रतापसिंहेन-प्रतिष्टितं खरतरगच्छाधिराज-श्रीजिनचंद्रसूरिभिः
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