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( २५२ ) तवारिख-पावापुरी-और-गुणशिलवनउद्यान. कमलसरोवरके मंदिरमें आतीहै, हाथी-घोडे-निशान-धजा-पताका-रथ-म्याना-पालखी-चांदीका समवसरण और-तरहतरहके बाजे शाथचलते है, इसतरह जलमंदिरमें जाकर शामको उसी जल सेकेशाथ सवारी वापीस पावापुरीआती है, उसवख्त मगधदेशके बहुतसे देहातीलोग जमाहोते है, और वडाजलसा होताहै, ऐसा नायाबजलसा यात्रीकों जरुरदेखना चाहिये, जिसकेबडेभाग्यहोऐसे-मौकेपर जियारतकों जावे, जलमंदिरमें तीर्थकर महावीरस्वाभीके चरनपर जो अंगीसोनेकी बनीहुइहै रायबहादुर धनपतसिंहजी साकीन-मुर्शिदाबादकी-बनाइहुइहै, पूरवदखनकी कोनमें जो सोलहसतीयोंके चरनहै उसपर लेख परतापसिंहजी धनपतसिंहजीका है. उत्तरपूरवकी कौनमें जो गणिदीपविजयजीके चरनहै-वे-जैनश्वेतांवरथे, और श्वेतांवरोंकीतर्फसे बनायेगयहै, बहारकीछत्रीमें जो दादाजीके चरनहै-उसपरलिखाहै संवत् ( १७५३ ) आषाढसुदी पंचमीकेरोज प्रतिष्टित कियेगये,
कमलसरोवरमें उतरनेकी सीढियां पूरवतर्फकी बनीहुइहै, उस जगह (३० ) हाथ उंडा जल हमेशां भरारहताहै. कमलसरोवर (८४) विधेकेघेरेमें बनाहुवा हमेशां पानीसे भरारहताहै, कभी मु. कतानही. वारीशकदिनोंमें बडीरवनकदेखोगे, और हरसाल इसमें हजारां कमलफुल पैदाहोते है. मोर-तोते-चिडिया-मुर्घ इसमेंहमेशा कलोले करतेरहते है. पेस्तर यहसरोवर बहुत बडाथा, पावापुरीसे पूरवकों आधमीलके फासलेपर पुराने समवसरणकी जगह छत्रीमें जो चरनथे-कमलसरोवरके नजदीक केवडोंके पेंडोंके पास जो समवसरणका मंदिर उपर बतायाहै उसमें तख्तनशीन कियेगये है, पावापुरीमें तीर्थका खजाना-मुनीम-गुमास्ते-नोकर-चाकर-चपरासी वगेरा सबठाठ बतौर शाहानाके मौजूद है, स्वर्च-आमदनी
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