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तवारिख-पावापुरी-और-गुणशिलवनउद्यान. ( २५१ )
(बयान मंदिर कमलसरोवर.) मंदिरकमलसरोवर जिसकाहाल उपरबतलाचुकेहैकि-यह-मंदिर-क्षत्रीयकुंडगांवके राजानंदिवर्द्धनका तामीरकरायाहुवाहै. इस मंदिरका आसार और दिवार इसकदर पायदारीसे बनाइगइहैकिजमानेहालमें ऐसाबनना दुसवारहै, कमलसरोवरके कनारेसे मंदिर तकजानेकेलिये (५८८) फुटको पुलवनाहुवाहै यात्री इसीपुलपर होकर जलमंदिरकों जातेहै, दोंनोतर्फ पुलकेउपर पथरकेकठहरे बने हुवे है, यात्री जब मंदिरकेपासपहुचतेहै-तो-कोटका-अवलदरवजा मीलताहै, चारोंकोनेपर चारछत्रीये-लोहेका कीमतीकठहरा बहुत बडीकारीगिरीसे सनातकियागयाहै, यात्री जब दूसरीपरकम्मामें पहुचतेहै निहायत उमदाजगह मालूमहोतीहै, बहारआनेकों दिलनही होता तीसरीपरकम्मा जोकि-दर्मियान मंदिर और कमलसरोवरके है मानींद स्वर्गकेदेखलो!
जलमंदिरमें तीर्थंकर महावीरस्वामीकेचरन पुराने बनेहुवे त. ख्तनशीनहै, दाहनीतर्फके आलेमें गौतमस्वामीके और बायीतर्फके आलेमें सुधर्मास्वामीके चरन जायेनशीनहै, तीर्थकर महावीरस्वामी के चरनोपर हमेशां सोनेचांदीके छत्र बंधेरहते है, वेदीमें और दिवा. रोंपर चांदीकपत्र लगेहुवे-और-चांदीके खंभोपर शमियाना कमख्वाबका बनाया रहताहै. यात्री मंदिरमें जाकर तीर्थंकर महावीर स्वामीके धरनोंके दर्शनकरे, इसमंदिरके तीनोंतर्फ तीनदरवजे और चारोंतर्फ परकम्मा बनीहुइहै, कातिकवदी-अमावासकेरौज तीर्थकर महावीरस्वामीके निर्वाणकल्याणका जलसा बढीधुमधामसे यहॉपर होताहै. और उसवख्त बहुतसे यात्री यहांपरजमाहोत है, उस रोज तीर्थंकर महावीरस्वामीकी सवारी पावापुरीसे निकलकर इसी
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