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तवारिख-तीर्थ-कांगडा. ( १८९ )
( तवारिख-तीर्थ-कांगडा ) जालंधर विभागमें कांगडा एक कस्बाहै. पेस्तर यहां जैनतीर्थ था-अब नहीरहा,-कांगडेकी पूर्वोत्तर हिमालयका सिलसिलाजारी है, गुरूदासपुर-चंबा-होशियारपुर,--और--धर्मशाला नामका कस्वा-कांगडेकी आसपास आवाददै, जिले कांगडेके वनोमें-चीता रीछ-भेडिया-शेर वगेराभी कभीकभी नजर आते है, शीशालोहा-और-तांबेकी खान इस जिलेमें पाइजाती है. ब्यासनदीकी रेतमें कभीकभी सोनाभी मिलताहै. बादशाह अखबरने सन (१५५६ ) में कांगडेपर चडाइ किइथी. जमाने हालमें यहांपर अमलदारी अंग्रेज सरकारकी जारी है, कांगडेकी मर्दुमशुमारी करीब (५३८७) मनुष्योंकी-जबसन (१९०५) अप्रेल महिनेमें भूकंप हुवाथा अजहद नुकशान पहुचाया,-करीब (२) मिनिटतक भूकंप होतारहा. भूकंप क्याथा एकतरहका प्रलयथा, इसके कुछ ऊचे भागपर एक किलाहै, मुसाफिरोंके लिये धर्मशाला यहांपर बनीहुइ है, खानपानकी चिजेसब मिलती है,-कइ अर्सेतक कांगडेका नाम-नगरकोटभी-मशहूररहा, तेहसील-खेराती अस्पताल-वगेरायहां बनेहुवे है,-कांगडेसें भागसु (१०) मीलके फासलेपर आबादहै, और वहांसे हिमालयका सिलसिला मुल्क काश्मिरतक चलागया, कांगडेसें वापिस उसी रास्ते पठानकोट आना. और पठानकोटसे रैलमें सवार होकर जिसरास्ते गयेथे अमृतसरकों आना,-रैलकिराया पेस्तर बतला चुके है,-अमृतसरसे रैलमें सवार होकर छहेलटा-खासा-अटारी-और जालों होतेहुवे लाहोर जंकशन उतरना. रैलकिराया छआने लगते है,
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