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(११० ) तवारिख-तीर्थ-आरासण. इसनेमिनाथजीके मंदिरकीपरकम्मामें वायीतर्फ-जो-आठ-छोटेदेवालयहै उसमें अवल देवालयके दरवजेकी दाहनीतर्फ दिवारमें एक शिलालेखशंगमर्मरपथरपर उकेराहुवा-और-उसमेलिखाहैकि-प्रा. ग्वाटवंशे-श्रे-वाहडेन-श्रीजिनचंद्रसुरि सदुपदेशेनपादपराग्रामे-उंदेखसहिका चैत्यं-श्रीमहावीरप्रतिमायुतंकारितं-तत्पुत्रौ-ब्रह्मदेवसरणदेवी-ब्रह्मदेवेन-संवत्--१३ ७५ अत्रैव श्रीनेमिमंदिररंगमंडपे-श्रीडाढाधरःकारितःश्रीरत्नप्रभसुरिसदुपदेशेन-तदनुज-श्रे-सरणदेवभार्या-सहदेवी-तत्पुत्राः श्रे-चीरचंद-पासड-आंबड-रावण-यैःश्रीपरमाणंदसुरीणामुपदेशेन-शप्ततिशततीर्थ-कारितंसंवत् (१३१० ) वर्षे वीरचंद्रभार्या-सुखमिणीपुत्रपुनाभार्यासोहगपुत्रलूणा झांझण-आंबडपुत्रवीजा खेतारावण भार्या-हीरुपुत्र-बोडाभार्या -कामलपुत्रकडुआ-दि-जय. ताभार्या-मुंटपुत्र देवपाल-कुमरपाल-तृ-अरिसिंहनागउरदेवीप्रभृतिकुंटुंबसमन्वितैः श्रीपरमाणंदमूरीणामुपदेशेन संवत् (१३३८) श्रीवासुपूज्यदेवकुलिकां-संवत् [१३४५] श्रीसमेतशिखरतीर्थ-मुख्यप्रतिष्टां-महातीर्थयात्रां-विधाप्य-जन्मपरंपरया सफलीकृतं.-इसलेखकों लिखनेवाले देवपाल-कुमरपाल-बयानकरतेहै-कि-हमने-अपनेकुटुंब परिवारसमेतयहां--आनकरतीर्थकरवासुपूज्यभगवानका-यह-छोटादेवालय संवत् (१३३८ ) में बनवाया, और-संवत् ( १३४५) में-समेतशिखरतीर्थके मुख्यमंदिरकी प्रतिष्ठा-और-महायात्राकिड, इसलेखसे
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