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________________ ( ८४ ) सवाने-उमरी. जो करीव ( ५० ) मीलके फासलेपर आलेर टेशनसें जायाजाताहै और दो-कोश-खुश्की रास्ते जानेसे मिलताहै, पोषवदी दशमीके रौज वहां यात्रीयोंका मेला भराथा और रथयात्राका जलसा हुवाथा, तीर्थ-कुल्पाकका मंदिर बहुत पुराना होगयाथा महाराजके उपदेशसे उसकी मरम्मत होना शुरुहुइ, पांचरोज वहांपर ठहरे, और वापिस हैदराबाद आये,... (१)-महाराजको लेखलिखनेका-और-ग्रंथ वनानेका अजहद शौखहै, वरवख्त महाराजकी कलम चलती रहती है, और लिखने पढनमें मशगुल रहतेहै. जैन-सप्ताहिक-पाक्षिक-मासिक वगेरा अखबारोमे महाराज धर्मके बारेमें लेखदेते रहतेहै, दिगर मजहब वाले जब जैन मजहबपर दलील करतेहै-तो-उसका फौरन ! जवाब देतेहै, महाराजके तमाम लेख-जोकि-जैन अखबारोमें-छपचुकेहैअगर-उनको इकठेकरके छपायेजाय-तो-एकबडा ग्रंथ बनजाय, (२) महाराज आपने हमरा सब मजहबोकी पुस्तके हमेशां. रख तेहै-ताकि-जिसमजहबवालोंकों जवाब देनाहो-सबुतकशाथ दिदियाजावे, (३) महाराजकी व्याख्यान सभामें शोर गुल करनाया-बातचित करना सख्त मुमानियतहै. और यहबात ठीकभीहै कि-शोर गुलहोनेसे-सुननेवालोकों शास्त्र सुननेमें खलल पडताहै व्याख्यान सभा-सादर-नादर-कोइ किसी किसमका शौर गुलकरे-तो-उसकों रुकसत करवा देतहै, इससे कइ श्रावक. नाराज. रहतेहै, और कहतेहै विद्वान् अछेहै मगर मिजाजके बडे सख्तहै, मगर अकलमंद. लोग तारीफ करतेहै कि-साधुहो-तो-सेहो, जो गरीब--और--अमीरकों एकसा समझे, ( ४ ) जैसे. समवसरणमें तीर्थकर महाराज मालकोश-और-भीमपलासी-रागरागनीमें-तालीम धर्मकी देतेथे-और-इंद्रदेवते-बाजोंसे स्वरपुरतेथे, ब-मुजब-अपनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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