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सवाने-उमरी.
(८५) ताकातके महाराज व्याख्यान सभामें-जब-भावना-अधिकारका वर्नन चलताहै-भैरवी कालिंगडा वगेरा रागरागनीसे व्याख्यान वांचते है और कभीकभी हारमोनियम बजानेवाले शख्श व्याख्यान सभामें बेठकर स्वर पुरतेहै, (५) महाराज जहां जहां तशरीफ लेजातेहै, वहांपर श्रावकलोग मय बैंडबाजा-वगेरा-जुलुसके पेशवाइ करके शहरमें लेजातेहै, कहीं मौका-साभी-होजाताहै कि-बाजे बगेराका इंतजाम नहींहो-वहां-श्रावक लोग जुलुसके शाथ पेशवाइ नही करसकते, महाराजकों इनवातोंसें-न-रंजहै न-खुशीहै, महाराज-न-किसीकों फरमातेहै कि-तुम मेरेलिये पैसाकरौ, जिसकी जैसी मरजीहो-वैसा-करतेहै, (६) महाराजके लेखमें जैसाज्ञानका असरहै, वैसा व्याख्यानमेंभी भारीअसर है, मुननेवाले तारीफ करते है कि-ज्ञानकी-खूबझडी बरसातेहै, देवद्रव्यके-तीर्थोके-और-ज्ञानपुस्तकोंके बारेमे लेख लिखकर श्रावकोंकों होशियार करना इन्हीका साहसहै, साफसाफ बातकहनमें किसीकी परवाह नहीं करते, महाराजका एतकात धर्मपर पुख्ताहै, (७) महाराज मुल्कोंकी सफरकरना ज्यादह पसंद करतेहै, गुजरात-मारवाड-पंजाब-राजपुताना--बंगाल-मालवा-खानदेश-वराड-और-मुल्क दखनमें सफर करचुके है, मुनिजनोंकी फर्ज है कि-मुल्कोंकी सफर करके धर्मको तरक्की देना,ब-कल्म-भगुभाइ-फतेचंद-कारभारी,
एडीटर-जैन,-चौबे,
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