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सवाने-उमरी.
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करंडक - आरंभसिद्धि - जन्मांभोधि - यंत्रराज --- त्रैलोक्यप्रकाश-मा नसागरीपद्धति - मेघमाला - गणिविज्जापयन्ना -- मेघमहोदधि-- भुवन - प्रदीप - और -नारचंद्र – ये - जैनमजहबके नजुमग्रंथ है, जैमनिसूत्रपारासरसूत्र - अगस्तिमूत्र - वाराहसंहिता - लंपाक - नीलकंठ - टोडरानंद - बृहदजातक - पारिजातरत्नाकर - सूर्यसिद्धांत — कमलाकर - और आर्यभटसिद्धांत - वगेरा दूसरेमजहबके नजुमग्रंथ है, जैनमजहबमें द्वादशारचक्रमय-कालचक्र - मानाजाताहै, और वैदिकमजहब स त्य- द्वापर - त्रैना और कलियुग यहचारयुग मानेजाते है, चांदसूर्य ग्रह - किसीका भलाबुरा नहीकरते, जोकुछ करनेवाले है- अपने अपने पूर्वसंचित कर्म है, चांदसूर्य वगेराग्रह - उसके सूचक और योतकहे, ऐसाजानना.
ज्येष्टवदी में बालापुरसे रवाना होकर महाराज-भुसावल -मनमाड- औरंगाबाद होते शहर जालना गये, और तीनहफते वहांपर कयाम किया. जालनेसे रवाना होकर पर्वणी - निझामाबाद - होत हैदराबाद गये और संवत् ( १९६५ ) की -वारीश वहांपर गुजारी व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे और सभा अछी भरतीयी, जलसा - पर्युषण पर्वका - उमदा तौरसे हुवा, - आसोज सुदी तीजके रोज मुसानदी की तुगयानी बडी जोरसे हुइ, - ( यानी ) - मुसानदीमें पानीका तोफान हुवा, - मगर बदौलत देवगुरू धर्मके चार aara तर्फ किसी किसकी आफत नही गुजरी, जहांकि महाराज - ठहरे हुवे थे, - इनदिनोंमें हिंदके बहुतसे शहरोसे महाराजके नाम कइ - तार और चीठीयां इस मजमूनकी - आइकि- आपकी खेरीयतका हाल इरशाल फरमावे, महाराजने उनका जवाब लिखा कि-में- बदौलत देवगुरुधर्मके खुशहुं, बादवारीशके - हैदराबादसे पोष बदी नवमीके रौज महाराज तीर्थ - कुल्पाकजीकी जियारतकों गये,
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