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________________ सवाने-उमरी. महाराजने अपने गुरुजीसे सूरिमंत्र-और-वर्द्धमान विद्या पढी, छेदग्रंथ-महानिशीथभी इसीअर्सेमें बाचा, मांडलसे रवाना होकर शहर अहमदाबादकों आये, और संवत् (१९४५) की वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां करतेथे और सभा अछी भरतीथी, हैमकोश-यहां महाराजने हिन्ज यादाकिया, और यहांके पुस्तकालयोंसे-कइ पुस्तक देखे. वसुदेवहिडिग्रंथ यहांबाचा, कइमरतबे बहीबडी सभा भरकर एक एक बातपर घंटोतक वाज करतेरहे, एक रौज जैनमंतव्यपर वाज किया उसकामतलब इस छ [जैनमंतव्य-प्रकाश,] १-रागद्वेष-कामक्रोध वगेरा दुश्मनोसे जिनोने फतेहपाइ है उनकों जैनशास्त्रोंमें जिनकहते है, और उनका बयान कियाहुवा-जो मतहै-उसकों जैनमत कहते है, जिसको हमेशांसे लोग मानतेआये, मानते है, और मानेगे, इसलिये इसकों सनातनधर्मभी कहागयाहै, २-जैनोके कायदे ऐसे है जिसका विरोधी बनना नहींहोसकता, अगर कोइ झुठी दलील करके विरोधी बनजाय तो उसकी मर• जीकी बात है. मगर सची दलीलसे विरोध नहीं आ सकता, ३-रागद्वेष कामक्रोध वगेरा (१८) दोषोसेरहित जिनेंद्रदेवको जैनमें इश्वरपरमात्मा मानेगये है, अर्हन्-वीतराग-सर्वज्ञ-ये-सब इनहीके नाम है, ..४-साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका-इन चारोंकों जैनमें संघ कहते है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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