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तवारिख - तीर्थ समेतशिखर.
( २७३ ) जमुई - गिधोर - झाझा- सिमुलतुला -- वैजनाथ - मधुपुर - जगदीशपुरऔर-महेशमुंड-टेशनहोते हुवे - गिरिडीटेशन उतरना, रैलकिराया देदरुपया लगता है:
गिरिडीकस्बा इसख्त तरक्की पर है, खानपानकी चीजे यहां उमदा तौर से मिल सकती है. सामने टेशन के बडीआलिशान जैन श्वेतांबर धर्मशाला बनी हुइ यात्री इसमे कयामकरे, संवत् (१९३४) मे - यह - धर्मशाला जैन श्वेतांवर श्रावक रायबहादूर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने तामीरकरवाड़, यात्रीयोंकों आरामकी जगह है, संवत् (१९४२) में - जैन श्वेतांबर मंदिर यहां रायबहादूर बुधसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने तामीरकरवाया, और तीर्थकर सुपार्श्वनाथकी मूर्ति तख्तनशीन कि, पासमे एक बगीचा खूब-तर-वताजा - गुलाब - चमेली - बेला - जुही - कुंद - गुलदाउदी वगेराके पेंड इसमें खडे है, और इनके फुल हमेशांकी पूजनमें चढायेजाते है, गिरिडीटेशन से मधुवनतक सडक पक्कीबनी हुइ - बेलगाडी - इक्का-बगीम्याना - पालखीवगेरा सवारी बखूबी जासकती है, रास्तेमें किसी तरहका खौफनही. गिरिडीसे शुभहके सातबजे रवानाहोकर शामकों पांचबजे मधुबन - पहुचसकतेहो, रास्तेमे पांचकोसपर बराकडगांव- जहांकि - तीर्थंकर महावीरस्वामीकों केवलज्ञान पैदाहुवाथा एक जेनश्वेतांबर मंदिर और धर्मशाला आरामकी जगह बनी हुई है, तीर्थंकर महावीरस्वामी के कदमोसें पाकहोइहुइ रिजुवालुकानदी यहांपर बहरही है. पानी-कभी बंद नहीहोता. तीर्थंकर महावीरस्वामी इसनदीके कनारे बहुत अर्सेतक विचरेथे, तपकिया, और श्यामाक कुटुंबीके क्षेत्रमें ध्यानसमाधि करतेहुवे उनकों यहां केव" लज्ञान हासिल हुवाथा, यहांपर एक- जैन श्वेतांबर मंदिर बना हुवा है, मात्री इसकी जियारतकरे, इसमे तीर्थंकर महावीरस्वामीके समव
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