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( २७२ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. हुइ मूर्तियोंपर होते है, छत्रीकी मरम्मत और रंगमंडपका फर्स रायबहादुर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने करवाया, वेदीपर लिखाहै संवत् (१९२५) मे-पाषाणमय वेदी और मरम्मत करवाइ, एक-छोटे जिनालयमें तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीके पंचकल्याणिक
और उनके कदम जायेनशानहै, उनपर लिखाहै संवत् ( १८५६) फाल्गुनवदी एकमके रौज-ये-कदम-प्रतिष्टित कियेगये,
दुसरामंदिर इसीके करिबमें दाहनीतर्फ तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीका-इसमे-उनकी मूर्ति करीब तीनफुटबडी तख्तनशीनहै,
और उसपर लिखाहै संवत् (१८५६) वैशाखसुदी (३) बुधवारकेरौज चंपापुरीमे देवाधिदेव-वासुपूज्यस्वामीकी-मूर्ति-सबसंघने मिलकर तख्तनशीन किइ, बायीतर्फके एक जिनालयमें नवपदजीका यंत्र जायेनशीनहै और उसपर लिखाहै संवत् ( १९२५ ) में रायबहादुर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने यह तामीर करवाया, इस मंदिरकी उपरकी मंजिलमे चौमुखाजीकी चारमूर्तिये-समवसरणका--आकार-तीनकोट--उमदातौरसे बनेहुवे है, संवत् (१८५६) में इसकी प्रतिष्टा किइगइ, धर्मशालामे दुतर्फा बगीचा बहुतबडा-जिसमें-गुलाब-चमेली-कुंद--जुही-गुलदाउदी-रायचंपा नवारवगेरा पैदाहोते है, और हमेशांकी पूजनमें चढायेजाते है, यहांपर-दो-पूजारी एक जमादार और तीन नोकर हमेशां वनेरहते है, तीर्थ चंपापुरीकी जियारतकरके यात्री-उसीरास्ते वापिस भागलपुर आवे,
(तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर,) भागलपुरसें रवानाहोकर नाथनगर-अखबरनगर-मुलतानगंज-वरीयारपुर-जमालपुर-दरहरा-कजरा-क्वील-मननपुर
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