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________________ तवारिख-पंचतीर्थी. (१४५ ) लिया, मंदिरकी दुसरीमंजीलपर पूर्वतर्फके रंगमंडपकी पीछलीबाजु, एकपाटपर-एकशिलालेखमें लिखाहै संवत् ( १६४७) वर्षे फाल्गुन शुक्लपक्षे पंचम्यांतिथौ-गुरूवासरे श्रीतपागछाधिराज बादशाह अखबरदत्त जगद्गुरू विरूद धारक भट्टारक श्रीश्रीश्रीहरिविजयमूरीणां उपदेशेन चतुर्मुख श्रीधरणविहारे प्राग्वाटज्ञातीय सुश्रावकशाह खेतानायकेन व पुत्र यशवंतादि कुटुंबयुतेन-अष्टचत्वारिंशत् प्रमाणानि-(४८) मुवर्णनाणकानि-पूर्वदिक्सत्क प्रतौलीनिमित्तं-अहमदाबाद पार्श्ववर्ति-सापुरतः श्रीरस्तु, इसका माइना यहहैकि-संवत् (१६४७) फाल्गुनमुदी पंचमीगुरुवारकेरौज-तपग छाधिराज-आचार्य श्रीहीरविजयसूरिके उपदेशसे पोरवाड खेतानायक श्रावकने धरणाशाहशेठकमंदिरमें पूर्व तर्फके दरवजेकी मरम्मतकेलिये (४८) सोनामहोरे भेटकिइ, धरणाशाहशेठ तपग छके श्रावकथे, प्रतिष्टाभी इसमंदिरकी तपगछके आचार्यनेकिइ उपरलिखचुके है, खरतरगछके श्रीयुतसमयसुंदरउपाध्यायने जो रानकपुरका स्तवन संवत् (१६७६) में बनायाहै उसकी पांचवी गाथामें बयानहै कि-" खरतर वसही खांतसुरेलाल"-वह-इसबडे मंदिरकी बहार जोछोटामंदिर बनाहै उसकीवात है, रानकपुरके मूलमंदिरकी तवारिख खतमहुइ, अब बहारके (२) मंदिरोंका बयानमुनिये ! सामने धर्मशालाके जो-तीर्थकर पार्श्वना. थनीका मंदिरहै उसकी दिवारोंपर तरहतरहकी कारीगरी-वेलबुटे और पुतलीये निहायत खूबसुरत बनीहुइ अतराफ मंदिरके पुख्ता कोट खीचाहुवा और सबकाम पायदारहै, इसमें मूलनायक-तीर्थकरपार्श्वनाथ भगवानकी शामरंग मूर्ति करीब सवाहाथ बड़ी तख्तनशीनहै, दुसरा मंदिर तीर्थकर नेमनाथजीका-इसमें-तीर्थकर नेमनाथ महाराजकी शामरंग मूर्तिकरीब सवाहाथ बडीतख्तनशीन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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