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( ११४ ) तवारीख-तीर्थ-आरसण. दह घिसाहुवा-उसका-न-संवत्-और-न-इबारत मालूमहोतीहै, मंदिरकी परकम्मामें दाहनीतर्फ निहायतउमदा शंगमरमरपथरपर समवसरणका आकार-तीनकोटवगेरादेखाव हुबहु मौजूदहै, मगर अपशोषहै, टुटगयाहै,
तीसरा मंदिर तीर्थकर शांतिनाथजीका-इसकीकतावजा-मानींद नेमनाथजीके मंदिरकेहै, इसकेभी दरवजेतीन-परकम्मा-और
दोनोंतर्फमिलाकर (१६ ) देवालय तामीरकियेहुवे-मगरकिसीमें मूर्तिनहीरही. छतमें ऊमदाकारीगरी और-इसकी मेहरावे अछीबनीहुइथीमगर सीर्फ ! एकही मेहराव-वास्ते नमुनाके रहगइ-बाकीकीतमाम नेस्तनाबुदहोगइ, सामनेकीतर्फजो छोटेछोटे आठदेवालयहै-अबलदेवालयके उपरलिखाहै संवत् ( ११४६ ) ज्येष्ट शुक्ल (९) शुक्रे प्रल्लदेवहालिकासुतेन-प्रोहरिश्रावकेन-- भ्रातृवीरकसंयुतेन-श्रीवीरजिन प्रतिमाकरिता-दूसरेदेवालयपरलिखाहै संवत् (११३८) वीरकसलहिकासुतेन-देवीगसहोदरयुतेन-जासक श्रावकेन विमलजिनप्रतिमा कारिता, इसकेपासकेदेवालयपर लिखाहै संवत् (११३८) वल्लभदेवीसुतेन-वीरकश्रावकेन-श्रेयांसजिनप्रतिमा कारिता, इसकेआगेकेदेवालयपर लिखाहैसंवत् [११३८) सोमदेवसहोदरेण-सुंदरीसुतेन-शीतलजिनप्रतिमा कारिता, आगेके देवालयमें तीर्थकर पार्श्वनाथजी प्रतिमा है, एक देवालयपर संवत ११३८] सहदेवश्रावकेन सुविधिजिन प्रतिमाकारिता लिखाहै, और दो देवालयके लेख टुटेहुवेहै, छोटे आठ देवालयोंके लेख खतम हुवे,
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