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तवारिख-तीर्थ-आरासण. (११३ ) देवालयकी वेदीपरलिखाहै संवत् (१३३५) मे तीर्थकर श्रीसुपार्श्वनाथ भगवानकी मूर्तिमृगसीर वदि १३ केरौज वृहद्गदछीय श्रीहरिभद्रसूरिके शिष्य-परमानंदसूरिने प्र. तिष्टित किइ,- दूसरामंदिर तीर्थंकर महाविरस्वामीका-बडासंगिनऔरपुख्ता -रंगमंडपकी छतमें किसकदर उमदाकारीगरी हुइहैकि-जिसकाबयानकरना जवानसेवहारहै. पथरमेंऊकेरेहुवे तरहतरहके भावकहींकहीं तीर्थंकरोंके समवसरणका आकार-परकंमा-चोइसदेवालयबनेहुवे मगर किसीमें मूर्तिनहीरही, मूलनायक तीर्थकरमहावीर स्वामीकी सफेदरंग मूर्ति-करीब (२॥) हाथवडी इसमेंतख्तनशीन है, और ऊसपर लिखाहै संवत् (१६७५) वर्षे माघशुद्ध ४शनौ-श्रीउपकेशवंशीयवृद्धशाखीय-सात्राहियाभार्या तेजलदेसुत....गोरदेसुत-सानानियाकेनभार्या नामल देवसुत सोमजीयुतेन-श्रीमहावीर विकारित-प्रतिष्टितंच-श्रीतपागछे-भट्टारक श्रीहीरविजयसूरीश्वर प्रभाकर-भ-श्रीविजयसेनसूरि पट्टालंकार भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः श्री आरासणनगरे-ठू०-राजपालोदामेन,
गभारेकेबहार दोनोंतर्फ खडेआकर दोबडीऔर दोछोटी मूर्ति निहायतखूबसुरत जिनकाबनना जमानामौजूदामें निहायत मुश्किलहैजायेनशीनहै, रंगमंडपमेंदोआले वगेरेमूर्तिके खालीपडेहै और उसमेंसिर्फ ! (११४८) का संवतही नजरआताहै ब-सबबहोके घीसजानेसेंइबारत नहीपडीजाती, दिगरआलेका लेखइससेंभीज्या
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