SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २५६ ) तवारिख-तीर्थ-पटना. रहाथा और फव्वारे उसके उछलकर पपैयाके मुहमे गिररहेथे, नोकरोने खयाल कियाकि-जैसे परीदके मुहमें गंगाकापानी खुदब-खुद गिररहाहै अगर यहांपर शहर आवाद किया जायतो खुद ब-खुद दौलत आनकर लोगोंकों मिलेगी. और तमामलोग अमन-व-आराममें रहेगें, गरजकि-नोकरलोग तलाश करके चंपामें आये, और अपने मालिकसे तमाम हाल सुनाया, राजाउदायिने वहांजाकर शहर आवाद किया. और उसकानाम पाटलीपुत्र रखा, मगर लोगोंने अपनी जवानमे पटना कहा, इन सबुतोसे मालुम होताहै करीब ( २०००) वर्ष हुवे पटना शहर आवाद है, पटनेका दुसरा नाम कुसुमपुरभी कहलाया, क्योंकि-उनदिनोमें फूलोंकी पैदाश ज्यादह होतीथी. उदायिके बाद पटनेके तख्तपर नंदनामका राजा बेठा, उसके पीछे दुसरानंद-फिर तीसरा, फिर चौथा, गरजकि-इसीतरह नवनंद पटनेकी गद्दीपर राजाहुवे. नवमे नंदका दिवान-शकडाल था, और उसके दो-बेटे-थे, पहलेका नाम स्थुलभद्र-और-दुसरेका नाम सिरियक, उस अर्समें कोशानामकी एक कस्बन-इसपटनेमे-रहतीथी, जो बहुत खूबसुरत-और-कमालहुस्नथी, इत्तिफाकसे स्थूलभद्रजीकी निगाह उसपर पडी, और आशक होगये, यहांतककि-घरकाकाम छोडकर वारांवर्ष उसीकी मोहब्बत में फसेरहे, जब इनके वालिदका इंतकालहुवा नंदराजाने इनके छोटेभाइ-सिरियको-बुलाया, और कहाकि-तुम-पटनेकी दिवानगिरि लेलो. उसनेकहा-में-इसकामके लाइक नहीहुँ, मेरावडा भाइ स्थुलभद्रजी है आप उनको बुलवावे, राजानंदने हुकम दिया कि-तुम-जाओ ? और उसको बुलालाओ, छोटाभाइ अपने बडेभाइके पास गया, और कहा तुमकों राजानंद बुलातेहै, चलो, ! और पटनेकी दिवानगिरी देतेहै लो,-जवाक-कस्वनके घरसे स्थु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy