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________________ गुलदस्ते-जराफत. (३९१) गिरनेकी आवाज हुइ तीन अफीमचीकों खयालआयाकि-अपना शाथी-कुवेमें गिरगया तीनो पुकारकरके पुछनेलगे, क्योंभाइ ! चोट तो-नही लगी, खुश-तो-है, ? उसनेकहा-में-वहुत खुशहुं, पस !' ये तीनो कहनेलगे अछी बातहै जहांरहो खुशरहो, ऐसा कहकर चलेगये, और वह कुवेमेही रहगया, देखिये ! नशेबाजोकी हालत, जो अपने शाथीको कुवेमें छोड़कर चलनिकले, आखोरकार जब दुसरे मुसाफिर वहांआये तो उनोने उसको निकाला,( एक अकलमंद मुसाफिर और भालुका लतिफा ) कस्याग्रे पथिकस्य सत्रामिलितो भालुस्तदा तच्छचौ, द्वौ गुन्हाति तदंबरं गतमतस्तस्यापतन्नाणकं, तत्रागत्या जडः किमस्त्यय मतोस्याहास्य वक्रादिदं, सोवक मामिमं प्रदेहि सुमते तेनाशुदत्ता करे, २९-एक मुसाफिर जंगलमें चला जारहाथा, उधरसे एक रीछ . उसके सामनेआया, मुसाफिरने सोचा यह रीछ मुजको खाजायगा, : बहेत्तरहै-में-इसकेकान पहलेसे पकडलं, पीछे जोकुछहोगा, देखाजायगा फौरन ! पासगया और रीछके कान पकडलिये, दोनोमें कसाकसी होनेलगी, मुसाफिर खुद जोरावस्था, एकघंटे तक दोनोंका कस्माल होतारहा, मुसाफिर के किस्सेमें-जो-सोना महोरेथी, कसाकसीकी हालतमें नीचेगिरपडी, इतनेमें एक दुसरा मुसाफिर रास्तेचलता वहां आगया, और देखता क्याहै ? रीछ और मुसाफिर आपसमें लडरहे है और सोना महोर नीचे पड़ी है, अगले मुसाफिरसे पुछनेलगा भाइ ! तुम क्या कररहेहो, ? उसनेकहा देख ! इस रीछकेकान मसलमसलकर उसके मुहमेंसे सोना महोरे निकाल रहाई, इस बातकों सुनकर पिछ ले मुसाफिरकों हिर्स दामनगीरहुइ और कहनेलगा थोडी देरके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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