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तवारिख-तीर्थ-पटना. ( २५९ ) रात-शालदुशाले-मेवा-मिठाइ--जिसचीजकी दरकारहो तयार मिलती है, पटनेका अफीमगोदाम भारी-और-कइजिलोसें अफीम यहांआताहै. तिजारतके लिये पटनाएक नामीशहरहै, और नीलका व्यापार यहां ज्यादह होताहै, मुल्कनयपालसे मणोबंद बडीइलायची यहांआती है, और मुल्कोमें भेजीजाती है, पटनेकी चारोतर्फ कइ बाग बनेहुवे और उनमे तरहतरहके फलफुल पैदाहोते हैं, मेडिकल कालेज-लाइब्रेरी-विहारनेशनेलकालेज-और खेराती अस्पतालबडीलागतके वनेहुवे है, पटनेके नजदीक गंगाकापाट वारीशके दिनोमें करिब चारकोशका होजाताहै, पटनेसे पश्चिमकों आठकोश सोनभद्रनदी-दखनसे-आनकर गंगामें मिली, और सरयूभीआनकर उसी जगह मिली है. वारीशके दिनोमे उसजगह गंगाकापाट सातकोश चोडाहोजाताहै, अतराफ पटनेके-जव-चने-मटर-अरहर-सरसोंतील-और-अलसी-कसरतसे पैदाहोती है. पटनेमें जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर-पांच-सात-और-बाडेकी गलीमे (२) जैनश्वेतांवरमंदिर बनेहुवे है, दोनोमें मूलनायक तीर्थकर पार्श्वनाथजीकीमूर्ति तख्तनशीनहै, और दोनोंमंदिरोंकी मरम्तहोना दरकारहै, धर्मशाला एक-बडेमंदिरके दरवजेपर बतौरकमरेके बनीहुइहै, दुसरी बगलमें गिरीहुइपडी है, अगरकोइ खुशनसीव इसकों फिरसे बनवावे यात्रीयोकों आराम रहेगा.
पटनेसें पश्चिमकों महोले तुलसीमंडीमें स्थूलभद्रजीके चरनोंकी छत्री और सुदर्शनशेठका शूलीसिंहासन बननेका स्थान काबिल देखनेके है, इस जगहकों कमलद्रहभी बोलते है, क्योंकि-पेस्तरयहां कमल बहुत पैदा होतेथे, करीव (१) विधेके घेरेमे कमलद्रह तालाव-और-बगीचा वगेरा आबादहै, जो कोइ जैनश्वेतांबरयात्री पटनेमें कदमरखे कमद्रहकों जरुर देखे, और वहांकी जियारत करे
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