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तपारिख-तीर्थ-आरासण. (१०७) - यहाँपर सबसेबडामंदिर तीर्थकरनेमनाथजीकाहै, इसकेतीनतर्फबडेबडेदरवजे-उत्तरतर्फकादरवजा बहुतवडा-तीमंजिला-मयमह-. . रावके गोया ! देवलोकका खासदरवजा मालूमहोता है, जमानेहा. लमें जववारीशहोती है दरवजेकीछतसे पानीगिरताहै, कोइइकबाल मंदहो इसकीमरम्मतपर-गौरकरे, दरवजेकीसीढीचढकर जबमंदिर केरंगमंडपमें पहुचते है मानो ! स्वर्गनजरआताहै. कया ! खुशनसीबोंने मंदिरतामीर करवायाहै जिसकोंदेखकर अकलकामनहीकरती. परकम्मामें जाकरदेखोतो मंदिरकेपीछलेपासे दिवारमेंगजथर लगाहुवाहै, इससेसबुतहुवा यहमंदिर किसीराजाका तामीरकरायाहुवा है, इसकाशिखर बहुतबुलंद-संगीन-और-बेशकीमती है, तीर्थकर नेमनाथमहाराजकी-सफेदरंगमूर्ति-करीब-चारहाथवडी इसमेंतख्त नशीनहै, और इसकेनीचेलिखाहै संवत् १६७५ वर्षे-माघशु. द्धचतुर्थ्यां-शनौ-श्रीउपकेशज्ञातीय वृद्धसज्जनायतपा गछे भट्टारक श्रीविजयदेवसूरि....श्रीनेमिनाथचैत्ये श्री नेमिबिबंकारितं--प्रतिष्टितं-च-भट्टारक श्रीहीरविजय सूरीश्वरपट्टप्राचीनाचलमार्तड मंडलायमानभट्टारक श्री विजयसेनसूरि शर्वरीसार्वभौमपट्टालंकार....गुणगणारंजितमहातपाविरुदधारितभट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः पंडितश्रीकुशलसागर गणिप्रमुखपरिवारसमन्वितैः
इसकामतलब यहढुवाकि-संवत् (१६७५ ) में . यहमूर्ति तामीरकरवाइगइ औरश्रीविजयदेवसूरि महा:
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