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________________ ANAMAvtar 1 .v.. .----- (१०८) तवारिख-तीर्थ-आरासण. राजने इसकीप्रतिष्टाकिइ, इसमूर्त्तिके पास दो-मूर्ति औरहै जिसकाकदकरीब सवासवाहाथहै, गभारेके बहारखडआकार चारमूर्ति--सफेदरंग-निहायतखुबसुरत जायेनशीनहै औरसव केनीवेलेख मौजूदहै मगरबचनहीसकते. इनमूर्तियों केसामनेसमवसरणका आकारकाबिलदेखनेकेहै, दिवारमें दाहनीतर्फ एकहीपथरमें १६४ मूर्ते-छोटीछोटीवनीहुइ-बीचमे-परिकरसमेत समवसरणकाआकार बनाहुवाहै, दोनोंतर्फ दोदखजेथे-नमालूमक्यौ बंदकरदियेगये, ? दाहनीतर्फकेदरवाजेकी जगहदिवारपर एकहीपथरपर ( १९) मूर्ते बनीहुइ और-उनकेनीचे लिखाहै संवत् ( १३४५ ) में-श्रीपरमानंदसूरिने इनकीप्रतिष्टाकिइ, दूसरेरंगमंडपमें एकतर्फके आलेमें नंदीश्वरद्वीपका आकार-और एकतर्फ देवीकी मूर्तिबनीहुइहै, दाहनीतर्फ रिषभदेव भगवानकी सफेदमुर्ति करीब ( २॥ ) हाथवडी जायेनशीनहे. औरउसकेनीचे लिखाहुवाहैकि-संवत् ( १६७५ ) वर्षे माघवदि (१)श्री मालीज्ञातीयवृद्धशाखीय-शा० रंगाभार्या-किलाभार्या सत्पत्नीभार्या संपूरसतहीरजी-श्रीआदिनाबिंब कारितं-तपागछे-श्रीविजयदेवसूरिभिः पंडित श्रीकुशलसागरगणिपरिवारयुतैः प्रतिष्टितं, बायीतर्फ पार्श्वनाथ भगवानकी सफेदरंग-मूर्ति-जायेनशीनहै, जोकरिब ( ५॥ ) हाय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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