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________________ ( ३२८ ) तवारिख-तीर्थ-कुल्पाकजी. बहुत हुवा करतेथे, और मुल्क वडा सरसब्जथा, दरमियान आलेस्टेशन और कुल्पाकके सडक पकी बनी हुई है और बीचमें एक नदी मीलती है जोकि-वारीशके अय्याममें भरपुर होजाती है, मंदिर यहांका निहायत आलिशान और बुलंदशिखरवंद मानींद देवलोकके बना हुवा है, जिसके देखनेसे मालूम होता हैकि-पेस्तरके दिनोंमें जैनोकी यहां कामील आवादीथी, जैनश्वेतांवर आम्नायके विविध तीर्थकल्प शास्त्रमे तेहरीरहैकि-यह-मंदिर विक्रम संवत् (६८०) की सालमें तामीर किया गया, इसमे तीर्थकर रिषभदेव महाराजकी शामरंग मूर्ति करीब अढाइ हाथ बडी तख्तनशीन है, और इसका दुसरा नाम माणिक्यदेवभी वोलसे है, रंगमंडपके एक खंभेपर शिलालेख लगा हुवा है उसमे अवल तीर्थकर रिषभदेवे महाराजकी तारीफ लिखी हुई है, और बादमे यहभी लिखा हुवा है कि- संवत् (१६६५) में इसमंदिरका जीर्णोद्धार हुवा, विजयसे. नमूरिका नामभी इसलेखमे दर्ज है, हाँके घीसजानेकी वजहसें तमाम लेख वखूबी नही पढा जाता मगर जो कुछ पढ़ा जाता है उसका मतलब उपर लिख दिया है, कोटके अंदर अवल दरवजे के भीतर और दोयम दरवजेके सीरेपर एक-और-शिलालेख लगा हुवा है जिसमे संस्कृत जवानसें यह मजमून लिखा हैकि, स्वस्तिश्रीयत्पदाभोज-भेजुषा सन्मुखी सदा, तस्मैदेवाधिदेवाय-श्री आदिप्रभवेनमः ? संवत् (१७६७) वर्षे-चैत्रशुद्ध दशम्यां पुष्यार्कदिनेविजयमूहतें-श्रीमाणिक्यस्वामिनाम्नः आदीश्वरभगवतो-बिंबरत्नप्रतिष्टितं-दील्लीश्वरबादशाह औरंगजेब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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