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तवारिख-तीर्थ-कुल्पाकजी. ( ३२९ ) आलमगीरपुत्र-बादशाहश्रीबहादूरशाहविजयराज्ये सूबेदारनवाब मुहम्मदयूसुफखानबहादूरसहाय्यात्-तपागछे भट्टारकश्रीविजयरत्नसूरिवरेसति-पंडितश्रीधर्मकुशलगणिशिष्य-पंडित केशरकुशलेन-चैत्योद्धार कृतः शाके (१६३३) प्रवर्तमाने इतिश्रेयः
माइना इसका इसतरह बयान किया जाता हैकि-अवलतीर्थकर रिषभदेव महाराजकों नमस्कार हो, संवत् (१७६७) की-सालमे-चैतसुदी दसमी पुष्यार्कके रौज विजय मुहूर्तमें-माणिक्यदेव स्वामि-आदीश्वरभगवानकी मूर्ति यहांपर तख्तनशीन किइ गइ, उसख्त देहलीके बादशाह औरंगजेव-आलमगीरपुत्र-बादशाह बहादूरशाहकी अमलदारीमें-सूबेदार नवाबमुहम्मद यूसुफखान वहादूरकी मददसे-तपगछके-भडारक श्री विजयप्रभमूरिके वख्त-पंडितश्री धर्मकुशलगणिके शिष्य-पंडितकेशर कुशलजीने इसकी प्रतिष्टा किइ, मंदिरका जीर्णोद्वार हुवा और भागनगरके श्रावक संघने अतराफ मंदिरके-पुख्ता कोट-तामीर करवाया, शक (१६३३) उसवख्त प्रवर्त्तमान था,
संवत् (१९६५) में हैदराबादके जैनश्वेतांबर श्रावकोने फिर इसमंदिरका जीर्णोद्वार कराया, और कोट वगेराकी मरम्मत किइ, मंदिरके पास यात्रीयोकों ठहरनेकेलिये मकानात बने हुवे है उसमें कयाम करे और तीर्थकी जियारत हासिल करे, तवारिखे तीर्थ कुल्पाक खतम हुइ.
यात्री तीर्थ कुल्पाकजीकी जियारत करके वापिस आलेर देशन आवे और रैलमें सवारहोकर-जानगांव-रुगनाथपल्ली-घानपुर-काजीपेठ-वारंगल-चिंतालपल्ली-नेकोंडा-कासुंमुंदरं-मानुकोटा-गारला
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