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________________ ( ३८२ ) गुलदस्ते - जरा फत. थक गयाहु, और नाक में दम आगया है, अब हर्गिज ! - न - दुंगा जो आईदे मिले, और मुसीबत उठाना पडे, आप आगेको बढिये, और किसी दुसरेके पास सवाल किजिये, सायत ! कुछ मिल जायगा, [ एक हकीम और मरीजका बयान ] १४- एक मरीजने ऐक हकीमसे अपनी बीमारीका हाल सुनाया, और दवा के लिये अर्ज गुजारीश कि आप मुजे दवा दिजिये, जो कुछ कीमत होगी खिदमत में हाजिर करूंगा, हकीमने उमदा दवा उसको दिइ और वह चंद्ररौजमें अछा होगया, हकीमने कहा अब आपकी बीमारी का होग, दवाकी कीमत भेजवा दिजिये, मरीजने कहा, आपने क्या असी भारी दवा दिइथी ? पांच चार पुड़िये जो दिल्ली उसकी कीमत लेलिनये, हकीम इसबातकों सुनकर अपनी भूलपर दादीम दुबे, और आइंदाकेलिये जैसा अहदकर लिया कि दवा पेस्तर बेलेना चाहिए, क्योंकि आदमी अपना काम निकले बाद अनजान होजाता है, और कुछ देता नही, बहेत्तर है पेस्तरसे होशियार होकर चले, [ औरत मर्दका मलाइकेलिये झगडा ] १५ - एक शख्शने अपनी औरतसे कहा कल में एक भैंस खरीदकर लाउडा, औरतने कहा अजीबात है, मलाइ - मेंही खाउगी, मने कहा नहीं ! मलाइतो - में खाउगा, और तुजे कोरी छांछ ढुंगा, इसपर दोनोंकी तकरीर होनेगी यहांतक कि - नतीजा - मार पीटा गया, पडोसी शोरगुल सुनकर दरयाकतकों आये और पुछने लगे क्यों लड़ते हो, ? दोनोंने अपना माजरा कह सुनाया, पडोस कहने लगे क्या खूब बात है ! अबतक भैंस आइ नही और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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