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(६६) तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. आगमी ३ खूबसुरतमूर्तिये इसमेंजायेनशीनहै. ओंकार और हूँकार खात दर जके दोनोतर्फ दिवारोंमें मयजिनमूर्तियों के बनेहुवेदेखलो! ___ मूलभंदिरकेसामने मंदिरपुंडरीकगणधरका बैंसकीमतीवनाहुवा है, तीर्थकररिषभदेवभगवान्के दर्शनकरकेयात्री इसमंदिरकेदर्शनकों जाते है. इसके दर्शन करके आम मंदिरोंकी परकम्मा-और-नसार करना चाहिये. ( यानी ) रुपये पैसे असर्फियोंसे ताकातहोतो मोतीयोसे तीर्थको वधाना चाहिये, तीर्थकर रिषभदेवमहाराजके पी. छाडी-जहां खिरनीकादृख्त खडाहै नीचे उसके तीर्थकररिषभदेवमहाराजकेचरन जायेनशीन, अंगुठे अंगुलियोंकेउपर सोनेके पत्तेजडे हुवेइसके दर्शनकरनाचाहिये, इसीजगह तीर्थकररिषभदेवमहाराज रायनवृक्षकेनीचे पधारेथेऔर ध्यानसमाधिकिथी. एकमंदिरनंदीश्वरदीपका इसमेंनंदीश्वरदीपका आबेहुबआकारवनाहुवादेखलो !एकमंदिरसहस्त्र कूटका-एकमेरुशिखरपहाडकी रचनाका-और-एकमदिरअष्टापद तीर्थकीरचनाका इसकदरउमदा औरसाफबनाहै जैसे वहोचीजेंलाकर यहारखीहै, एकमंदिरसमेतशिखरतीर्थकी रचनाका निहायतउमदा-जिसकीतारीफ भीशालहै, कहांतकवयानकरे ! जोदेखता है वहीजानसकताहै, हरसालकातिकशुक्ल पुनमकेरौज इसी विमलवशीटोंकमें रथयात्रा निकलतीहै, सोनेचांदीकरथ-पालखीऔर-तरहतरहकेबाजे वगेराजुलुलसे मूलमंदिरकीचारोंतर्फ परकम्मादिजातीहै. सोनेकेकलशे-धजापताका-चाजोंकी अवाजे-और यात्रीयोंकाठाठ-उसवख्तयहां जमाहोताहै, बडेबडेवजंत्री-सारंगीतबले-हारमोनियम-बेला-और-जलतरंगवगेरा साजसे गवैयेलोग यहांपर गायनकरते है, जिसशख्शने कातिकसुद पुनमकेरौज शत्रुजय तीर्थकीयात्राकिइगोया ! उसनेखास ! वहिस्तदेखलिया, और तीथंकरोके समवसरणमें खुदजावेठा, एकतर्फयात्रीयोंके स्नानकरनेकी
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