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तवारिख-तीर्थ शत्रुजय.. (६५) थीपोल दरवजेकी दाहनीतर्फशुरुहैजोकि-पाक-और-सफेदपानीसें मानींदे बर्फ जमाहै. हाथीपोल दरवजेके आगे बहुतबडी सीढियां चढकर खास तीर्थकर रिषभदेव भगवान्के मंदिरकों जानाचाहिये. मंदिरक्याहै ? गोया ! शजयपहाडका एक जवाहिरातहै, संवत् ( १५८७ ) में शेठ करमाशाहनेइसकों तामीरकरवायाअवललिखचुकेहै, करमाशाहशेठ-जैसे-खुशनसीव-और-मुबारिकसितारे दुसरेकौनहोगें ? जिनोनेऐसे अजायब कामकिये. जोइनसानकी अकल से बाहरहै, कलमकी ताकातनहीकि-लिखकर बतलादे, जबानकी हेसीयतनहीकि-तकरीरकरसके. स्याहीइतनी मौजूदनहीकि-इसका बयान लिखे. दुनियामें एकसेएकनकासी और शिल्पकारी जाहिर है मगर उस्तादोने यहांआनकर उस्तादी खतमकिइ. बडेबडेकारिगरलोक इसमंदिरका नकसा उतारकरलेजाते है. मंदिरकेवहार वडा आलिशान चौक-शंगेमर्मरकाफर्स-और सेंकडो मंदिरोंकाघेराव दिलकों मोहेलेताहै, मंदिरोकेशिखर-सोनेकेकलश-धजापताका और झलाझलरौशनी देखकरआदमीकी नजरचकराजातीहै, शत्रुजयतीर्थका यह एकमूलमंदिरहै,-औरइसमें तीर्थकररिषभदेवभगवानकी बडी आलिशानमूर्ति काबीलेदीद और दिदारके वनीहुइ गोया ! खास तीर्थकररिषभदेवमहाराज यहां आनकर तख्तनशीनहै. इसमूर्तिकी तारीफ कहांतकलिखे जिसकीसानी दुनिया दुसरी-न-होगी. उचाइमें छहाथ बडी-आंखे स्फटिकरत्नकी और ललाटमें हीरालगा हुवाहै, दर्शनकरके दिल निहायतखुशहोगा, मंदिरकेभीतरी रंगमंडपमें शंगमर्मरपथरके वनेहुवे हाथीपर राजाभरतचक्रवर्ती औरमरुदेवीमाताकी खूबसुरतमति जायेनशीनहै, यहरचना उसवरुतकी है जबकि तीर्थकररिषभदेवमहाराजकों केवलज्ञान पैदाहुवाथा, भरतचक्री औरमरुदेवीमाता वास्ते तीर्थकररिषभदेव जीके दर्शनोंकों आयेथे,
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