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________________ ( २१० ) तवारिख - तीर्थ - कौशांबी. धर्मशाला बनावे, जिनके बडेभाग्यहो ऐसे तीर्थकी जियारत करे, आजकल कौशांबीनगरीकी आबादी कुल (२००) घरोकी रहगई, एकदिन बोथा जहां झलाझल रौशनी - और - बेशुमार दौलतथी. आज वही जमीन वैरवनकहै, चोथेकालमें जहांजहां तीर्थकरोके कल्याणकोंकी भूमिथी पंचमकालमें वहां धर्मकी कमीहोजायगी ऐसा जो तीर्थकरों का फरमाना था नजर से देखलो, पेस्तर यहां कसुंभकेद्रख्त बहुतपेंदा होते थे इसलिये इसकानाम कौशांबीनगरी कहा गया, छठेतीर्थंकर पदममभु इसीकौशांबी में पैदा हुवे थे. और वत्सदेशकी राजधानी यहीकौशांबी कहलातीथी, चवन - जन्म - दीक्षा - और -- केवलज्ञान -- ये - - चार कल्याणक तीर्थंकर पदम के इसी कौशांबी में हुवे, श्रीधरराजाकेघर सुसीमारानीकी कुखसे कातिकवादी ( १२ ) चित्रानक्षेत्र केरौज उनका यहां जन्महुवा, बहुत असेतक उनोने कौशांबी पर अमलदारीकि, पेस्तरदीक्षाने एकसालतक बराबर उनोने यहां खेरातक और कातिकदी ( १३ ) के रौज दुनियाके एशआराम छोडकर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार कि, और चेतमुदी ( १५ ) के रौज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेवता वगेरा उनकी खिदमतमें आतेथे धवलशेठ - जोकि - श्रीपालजीकों - भरूअछ नगरमें मिलाथा इसीकोशीका वाशिंदा था, श्रीपालजीकी वाल्दासाहिबा यहांपर हकीमकी तलाश करनेकों इसलिये आइथी कि मेरेवेटेकी आर्जा-कोढकी कोइरफाकरे, और उसने यहांपर एकज्ञानीमुनिके मुखसे यह अजूबा सुनाथाकि- तुम - उज्जेनकों जाओ ! तुमाराबेटा अछाहो गया, तीर्थंकर महावीरस्वामीको चंदनवालाने उनकेतपका पारना यहां करायाथा, बडेबडे इकबालमंद शख्स यहां आवादथे, और ashiमती और मशहूर जैन श्वेतांबर मंदिर यहांपर मौजूदथे जिनके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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