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तवारिख-तीर्थ-कौशांबी. ( २०९ ) फेजुल्लाहपुर--रसूलाबाद-टेनी-खागा-कुनवार-सिराथु--और-- सुजातपुर होते भरवारी टेशन उतरे, रैलकिराया करीब बारांह आने लगते है, टेशनके पास सराय बनीहुइहै जाकर उसमे कयाम करे, तीर्थ कौशांबी यहांसे खुश्कीरास्ते दसकोसके फासलेपर वाके है, सवारीकेलिये इक्का-बगी तयारमिलती है, इकेकाकिराया जाते आतेकरीब तीन-या-चाररुपये लगेगे, और तीनसवारी ब-खूबी उसमें बेठसकेगी, टेशनभरवारीसे शुभहकेचले बारांबजे पपोसागांव पहुचसकोगे, जहांसे कौशांबीनगरी करीब (२) कोशपर रहजाती है भरवारीसे चारकोस पकीसडक-और-आगे कच्चारास्ताहै. गांव-सडककी आजुबाजु रहजाते है रास्ताकठीन-बहुतसेकेशुकेपेंड और-गंगाकीनहर जो कानपुरसे इलाहाबादको गइहै मिलेगी. नहरकी बजहसे जमीन तर-और-अनाजकी पैदाश ज्यादहहोती है भरवारीसे पपोसा गांवतक इक्केमेंजाना और वहांसे दोकोस आगे पैदल चलनाहोगा, क्योंकि-रास्ता-कठीनहै, इक्का-बगी-जानही सकते. कौशांबीतीर्थ यहांसे आगे दोकोसदूर है, जिसकों आजकल कोसंवपाली बोलते है,-यात्री वहांजाकर तीर्थकौशांबीकी क्षेत्रफर्सना करे,
कौशांबी में जाकर जहांमुभीतादेखे कयामकरे, और पूर्व-याउत्तरकी तर्फ मुहकरके तीर्थकर पदमप्रभुकी इबादतकरे, क्योंकितीर्थकर पदमप्रभुकी जन्मभूमि यही कौशांबी है, आजकल-न-कोई यहां जैनश्वेतांबर मंदिरहै-न-श्रावकहै, सीर्फ ! क्षेत्रस्पर्शना करके तीर्थकी जियारतहुइसमझे, अगर कोइयात्री (२५०००) हजाररुपये खर्चकरके यहां मंदिरधर्मशाला बनवादे-तो-तीर्थ कौशांवीका फिरसे उद्धार होसकताहै, दुनियाकी नामवरीमें हजाराहरुपये खर्च करते है मगर तारीफ उनकी है जो तीर्थकरोकी जन्मभूमिपर मंदिरमूर्ति
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