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________________ ( ७२ ) तवारिख - तीर्थ शत्रुंजय. कसरतकेमंदिर किसीतीर्थपरनही, महाराज छत्रपति - संप्रति-औरमहाराजकुमारपाल - ये दोनो जैन श्वेतांबर श्रावकथे, जिनके बनाये हुवे जैनमंदिर यहां पर मौजूद है, दिवानवस्तुपाल तेजपालभी जैनश्वेतांबरावकथे, जिनोने इसतीर्थपर जैनमंदिर बनवाये है, दौलत और कुमपाकर धर्मकरना ऐसे धर्मपादोका काम है, [ अनुष्टुप - वृत्तम्. ] श्रीयुगादिजिनादेशात् - पुंडरीको गणाधिपः, सपादलक्षप्रमितं - नानाथर्यकरंवितं, श्रीशत्रुंजयमहात्म्यं - सर्वतत्वसमन्वितं चकारपूर्व विश्वैक-हिताय महितं सुरैः, शत्रुंजयतीर्थ की तारीफ जैनशास्त्रोंमें ज्यादहलिखी है तीर्थकर रिषभदेवमहाराजके अव्वल गणधर पुंडरीकस्वामीने इसकी तारीफ सवालाख लोकसे बयान कि थी, तीर्थंकर महावीरस्वामी के पांचमे गणधरसुधर्मास्वामीने चौइस हजार श्लोकसे तारीफ क्यानकि, बाद उनके श्रीमान्- धनेश्वरसूरिजीने - शत्रुंजय महात्मनामका ग्रंथ बनाकर तारिफकिर, जो अवभीमौजूद है, पेस्तर पहाडबहुत बडाथा, जमाने हालमें कमरहगया, पेस्तरयहां बडीबडी गुफाये और तरहतरहकी वनास्पति- अशोक - केवडा - मोरसली - मयूरशिखा - केतकी, चंपा, और चमेली वगेरा बहुतायत संथी, [ अनुष्टुप - वृत्तम् ] नास्त्यतऽपरमं तीर्थ - धर्मो नातः परोवर: शत्रुंजये जिनध्यानं - यज्जगत्सौख्यकारणं, शत्रुंजयसमान दुसरातीर्थ नही, इसतीर्थमें आनकर ध्यान करनेसे पुन्यानुबंध पुन्यऔर अशुभकर्मकी निर्जराहोती है, मुल्क सौराष्ट्रका शिरोताज यही शत्रुंजयपर्वत है, - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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