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________________ ( ३४ ) . सवाने-उमरी. (अनुष्टुप-वृत्तं,) सर्वमस्ति स्वरूपेण-पररुपेण नास्तिच, अन्यथा सर्वभावानां-एकत्वं संप्रसज्यते, १ ... १८-त्यक्ष-और-परोक्ष-ये-दो-माग जैनमें मानेगये है, १९-जैनमें चेतना लागयुकको जीव मानाहै, और चेतनारहितकों अजीब-गुभकर्मके पुइगठकों पुन्य-और अशुभकर्मके पुदलको पाप मानाहै, भलेपुरे परि गामोसे जोर शुभाशुभकर्म बांधता है. और उदय आनेसें भोक्ताहै, (शार्दूलविक्रीडितं.] २०-तत्वानि व्रतधर्मसंयमगतिज्ञानानि सद्भावना, प्रत्याख्यानपरिसहेंद्रियमध्यानानि रत्नत्रयं, लेश्यावश्यककाययोगसमितिमाणाः प्रमादस्तपः संज्ञाकर्मकषाय गुस्पतिशयाज्ञेयासुधिभिः सदा ॥१॥ [स्रग्धरावृत्तम् , ] त्रैकाल्यं द्रव्यषदकं नवपदसहितं जीवषट्कायलेझ्याः पंचान्येचास्तिकाया व्रतसमितिगतिज्ञानवारित्रभेदाः इत्येतन्मोक्षमलं त्रिभुवननहितैः प्रोक्तमहद्भिरिशैः प्रत्येतिश्रद्धाति स्पृशतिचमतिमान् यस्यवैशुद्धदृष्टिः ॥२॥ _नवतल-पंचमहाव्रत-द्विविधधर्म -सतराहभेदी संयम-चारगति पंचज्ञान-बारांभावना-दस प्रत्याख्यान-बाइस परिसह-पांचइंद्रिय आठ मद-चार ध्यान-तीनरत्न-छलेश्या-पट्आवश्यक-छकायतीनयोग-पांचसमिति-दसमाण-पांचप्रमाद-बारांभेदीतप-चारसंज्ञा आठकर्म-चारकषाय-तीनगुप्ति-चौतीसअतिशय-तीनकाल-छद्रव्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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