________________
( १५० ) तवारिख-ओशियानगरी. सहुइ तबसे-वे-चारमहाव्रतकी जगह पांचमहाव्रत कुबुलकरचुकेथे,महाराजरत्नप्रभसूरिजी उनहीसमुदायमेंसेंथे,-जब-वे-ओशियानगरीमें तशरीफ लाये ओशियानगरी खुवतरकीपरथी, औरउसवख्त इसकी मर्दुमशुमारी लाखोंआदमीयोंकीथी. साहुकारोकी दुकानपर सोना चांदी-और-गंगंजलगतेथे-और कोटीध्वजवाशिंदोसे यहनगरी सरगर्मथी, राजासाहब-उपलदेव-परमार यहां अमलदारी करतेथे,
और लोग अमनचैनमेंथे, महाराज रत्नप्रभसूरिजीने उससालकी पारीश ओशियानगरी में गुजारी, उनकी धर्मतालीमसे-महाराजउपलदेवपरमार जैनधर्मपर एतकातलाये, और ओशियानगरीके (३८४०००) शख्शोने जैनधर्म मंजूरकिया, रत्नप्रभसूरिजीने अछेवख्तपर उनको नमस्कारमंत्रदिया, और-हिदायतकिइकि-अगर तुम-इससचेधर्मपर पावंदरहोगे-तुमारा इसलोक परलोकमेंभलाहोगा,
ओशियानगरीके वाशिंदेहोनेसें इनकानाम ओशवालकहलाया, जैनधर्म-तीर्थकर रिषभदेवभगवानके वख्तसे चलाआताहै, इस अवसर्पिणीकालमें अवल तीर्थकर रिषभदेवहुवे-रिषभदेवकेबाद तीर्थकरअजितनाथ-इसीतरह चौइसतीर्थकर होचुके है, क्षत्रीय-ब्राह्मण वैश्य-और-शुद्र-ये-चारफिरके हमेशांसे चलेआतेहै उनमेंसे अखीरके शुद्रफिरकेको छोडकर बाकीके तीनोफिरकोमे जैनधर्मपालनेवाले लोग पेस्तरसें चलेआतेहै, चक्रवर्ती-वासुदेव-प्रतिवासुदेव-मांडलीक-और-छत्रपतिवगेरा बडेबडेराजे जैनमजहबमें होगये अखीरके तीर्थकरमहावीरस्वामीके बाद (७०) वर्षपीछे जब-रत्नप्रभमूरिजीने ओशवाल-कायमकिये-तबसे-ओशवालनाम ज्यादहमशहूर हुवा, जोलोगकहतेहै-रत्नप्रभसूरिजीने-ओशियानगरीके शुद्रलोगोंकोंभी-सामीलकरलियेथे यहवात महेजगलतहै, क्षत्रीय ब्राह्मणऔर वैश्य-इनतीनोंफिरकेमेसें जिनजिनोनेजैनधर्म इख्तियारकिया
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com