________________
तवारिख-तीर्थ-भोयणी. (९९) निकली. ऊनोनेउनमूर्तियोंकों बहारनिकाली. उसवख्त जैनश्वेतांबरश्रावक-त्रिभोवनदास-जोकि-कुंकवावगांवका वाशिंदा-अपनी-शिकमपरवरीशकोलिये मौजेभोयणीमें दुकानकरताथा तीनोंमूतियोंकोंदेखा, औरकहा ! येतोहमलोगोके मजहबकीहै, इनमेंजो पदमासनमूर्तिहै तीर्थंकरमल्लिनाथजीकीहै औरकायोत्सर्गध्यानमयजो
औरहै वेभीहमारेहीमजहबकीहै,-तीनोंमूर्तिये सफेदशंगमरमरकीबनीहुइ देखकरसवखुशहुवे, कडीगांववाले लोगकहनेलगेहम अपने गांवमेंलेजायगे, कुंकवावगांववालेबोले हमलेजायगे. भोयणीकठाकोरसाहबबोले हमअपने भोयणीगांवमें लेजायगें. क्योंकि-हमारेगांवके किसानखेतमें ये मूर्तियेनिकलीहै, औरइसलिये हमाराहकहै, गरजेकि-उसख्त तकरारहोनेका मौकाआगया, कुंकवावगांवके वाशिंदेत्रिभोनदासने कहाकि-जराठहरो ! ! अगरदेवसचेहै-तोसबकुछठीकहोजायगा. तकरारकरनेकी कोइजरूरतनही. एककामकरो बिनाबैलजोते एकगाडीलाओ. औरइनमूर्तियोको गाडीमेंसवारकरो, जिसतर्फगाडीकामुह-खुद-ब-खुदफिरजाय उसतर्फलेजाओ, लोगोनेवैसाहीकिया, और फौरन ! गाडीकामुह मौजेमोथणीतर्फ फिरगया, बस ! फिरक्यादेरथी ! ! भोयणीवाले खुद उसमूर्तिकों अपनेगांवमेंलेगये. भोयणीघांवके ठाकोरसाहबने पेंशवाइकिइ. औरगांवमेंलेजाकर केवलपटेलकेघर-एक-अलगमकानमें तीनोंमूर्तिजायेनशीनकिइ, शहर-ब-शहरसे यात्रीआनेलगे, पूजनका कारोबार बखूबीचलनेलगा. औरयात्रीकी आमदरफतसे खजाना दिनपरदिन बढतीपर होतागया, पेस्तरधर्मशालाबनी और बाद एकबडाआलिशान शिखरबंदमंदिरबनाकर संवत् ( १९४३) माघ वदी (१०) केरौज-प्रतिष्टाकिइगइ औरतीर्थकर मल्लिनाथमहाराज की मूर्तिउसमेंतख्तनशीनकिइ, कारखाना-मुनीम-गुमास्ते-नोकरचाकर-पूजारी-सवठाठबनाहवाहै, यात्रीजोकछरकम, तीर्यकेखन
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com