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हिदायत-उल-आम.
कंपादान तीर्थकरदेवोन किसीशास्त्रमें मनानहीफरमाया, जोलोगफरमाते है अनुकंपादानदेना ठीकनही उनकीभूलहै. दुरवीको देखकर जिसके दिल में रहमनहीआइ उसकोधर्मीकौनकहसकताहै. ? यात्रामें हरवख्त एक कडा-या-अंगुठीहाथमें-जरुरपहनलो. गेर मुल्कमें कभी अकेलेरहजानेके वख्त-या-चौरीहोजानेपर इसकों वेचनेसे कामचलेगा, वरना ! ऐसीहालतमें बडीतकलीफ उठानापडेगी, किसकिसकेपास मांगनेजाओगे. आजकल रुपये पैसे उद्धारदेना बहुतसेंलोग परहेजकरते है,-जियारत जानातोजहांतक वनपडे कुटुंबकों और रिस्तेदारोंकोंभी शाथलेनाचाहिये. अगर उतनीताकात-न-होतो अपनीऔरत-और-आपदोनोजाना मुनासिव है. अगर उतनीभी ताकान-न-होतो-अकेलेही चलेजानाठीकहै, मगर ऐसानहीकरना कि-आजसेंकल-और-कलसेंपरसो इसतरह मुस्तीम दिनगुजरतें जाय, कइलोग इसखयालमेंभी रहतेहैकि-हम-पेस्तर दोलतमंद थे और अब गरीबहोगये,-अगर विनानोकरचाकरके अकेले चलेजाय तो-हमारीइजत-न-रहेगी, तो-यह एक आलादर्जेकी भूलहै, इज्जत केलिये धर्मको खोनावहेत्तरनही. अकेलेही चलेजाना, मगरइज्जतकावहानालेकर तीर्थयात्राको छोडनाठीकनही. जो-कामधर्मकाकर लिया वहीअपनाहै, अगरतुम खुदकंजुस बनकर दौलतखर्चकरना नहीचाहते-उसकातो कोइइलाजही नहीं है,__मारवाड-और मुल्कपूरवके जैनश्वेतांवरश्रावक-जोकि-अपनी औरतोंको पर्दानसीनरखतेहै, यात्रामें नौकरचाकर दासदासीका ख_उठाना ताकातनही-और-उनकों पर्दैहीपमें उमरबतीतकरादेना कोइ अकलमंदीकीवातनही, तीर्थोंमें देवमंदिरों में ओर व्याख्यानसभामे पारखना गोया ! देवगुरुधर्मकी बेअदवीकरनाहै, देखो ! तीथैकगेके समवसरणमें वडेवडेछत्रपतिराजाओंकीरानीयेभीखडीरहती
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