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( ३७२ ) गुलदस्ते-जराफत. हमेशां फिरतारहताहै कोइदिन अछा-कोइदिन बुरा, मगर-हां ! जो कंजुसहोतेहै-वे-जैसे फिक्रमेंही गिरफतार रहाकरतेहै, धर्ममें खर्चकरना नही और जैसेही वहाने पेंशकियाकरतेहै, मुताविक धर्मशास्त्रके देखाजाय तो लाजिमहै जोकुछ बनपडे धर्मकाममें खर्चकरना और खाने पीनेमें कंजुसाइ नहीकरना, पुर्वजन्ममें धर्मकियाथा तो यहांधनपाया, अगर यहां-न-करोगे आगे क्यापाओगे ? बहत्तरहै इस बातकी फिक्रकरना, एक कंजुससे एक शख्शने पुछाकि-कपडेकैसे पहनना चाहिये, उसनेकहा कपडे ऐसे पहनना चाहिये जो निकम्मे हो, जिसको दुसरा कोइ उठालेजानेका खयाल-न-करे, क्याकहना ! खूब सलाहदिइ, ! सलाह देने वालेहो-तो-ऐसेहो,
[ एक मालिक-और-नोकरका किस्सा, ]
२-एकशख्शके वहां एकनौकरथा, एकरौज मालिककी तबीयत कुछ नादुरुस्त हुइ नौकरको बुलाकरकहा, जाओ ! हकीमके पाससे दवा लाओ ! नोकर बोला अगर हकीमसाहब घर-न-मिले गेंतो ? मालिकने कहाजाता क्यौनहीं ? बहानेबाजी कररहाहै, नौकरनेकहा अगर उनकेपास दवा-न-होगीतो? मालिकनेकहा तुजकों क्यामालूम दवा-न-होगी, नोकरने कहा, अछा ! जाताहु मगर दवा फायदा-न-करेगीतो, ? मालिक वोले अवे ! नादान ! फायदाहोने-न-होनेसे तुजे क्यागरज ? तूं ! जा, और दवा ला, ! नौकर बोला फर्जकरो दवाने फायदाभी किया मगर आखीर एकरोजतो मरनाही है, फिरदवाकी क्या जरुरत, ?
[ दोहा] चलनाहै रहनानही-चलना विस्वा वीस, थोडे जीवन कारने-कौन गुथावे सीस, १,
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