________________
तवारिख-तीर्थ-कंपिलपुर. (१९७ ) सुदी (३) उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रकेरौज उनका यहां जन्महुवा, बहुत अर्सेतक उनोने कंपिलपुरके तख्तपर अमलदारी किइ, दीक्षाके पेस्तर उनोने यहांपर बहुत खैरात किइ. माघशुदी (४) के रौज उनोने दुनियाके एशआराम छोडकर दीक्षा इख्तियारकिइ पोषसुदी (६ ) के-रौज उनको यहां केवल ज्ञानपैदा हुवा, इंद्र देवते उनकी खिदमतमें आतेथे. दसमे चक्रवर्ती हरिषेण-औरबारहमे चक्रवर्ती ब्रहमदत्तजी इसीकंपिलपुरमें हुवे. बडेबडे दौलत मंद यहांपर पेस्तर आवादथे. तीर्थकर महावीर स्वामीके निर्वाण हुवेबाद ( २२० ) वर्ष पीछे अश्वामित्र नामकेचोथे निन्हव इसीकंपिलपुरमें आनकर सुधरे, गांगलिकुमार इसीकंपिलपुरका वाशिंदा था, जोकि-पृष्ट चंपानगरीके राजा-शाल-महाशालका-भानजाथा, पृष्ट चंपानगरी हिमालय पहाडकी उत्तरकों मुल्क तिब्बतमें आबादथी, जब-शाल-महाशालने दुनियाछोडकर तीर्थंकर महावीर स्वामीके पास दीक्षा इख्तियार किइ, अपने भानजे गांगलिकुमारकों कंपिलपुरसे बुलाकर अपनीगदीदिइ और आप मुनि होगये, दुर्मुख नामका राजा जोइसी कंपिलपुरमें अमलदारी करताथा एक रौज जब बागकीसैरकों निकला एक मोटाताजा बेल रास्तेमें उसकी नजरसे गुजरा, देखकर दिलमें निहायत खुशहुवा और कहनेलगा क्या उमदा बेलहै, दुसरे रौज वही बेल मरगया, और उसीरास्ते पडाहुवाथा जिसरास्तेसे राजादुर्मुख फिरनिकले, और देखते है-तो-वही बेल मराहुवा नजर आया, इस परसे उसकों नसीहतहुइकि-दुनियामें-एकदिन सबकों मरनाहै, इससे यहीमुनासिबहै दुनयवी कारोबार छोडकर दीक्षा इख्तियार करना, दुसरे रौज उनोने वैसाहीकिया,
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com