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(४८) सवाने-उमरी. बारेमेंभी समझलो हर्ज है. इस व्याख्यानसे यह दिखलानाथाकी दुनियामें मूर्तिका पूजना कदीमसें चलाआता है, और उसकेविना किसीका काम नहीं चलता, कोइ पहाडको-कोइ मकानको-कोइ शाखको-चित्रकों-और-कोइ मूर्तिकों मानता पूजताहै असल पुछो यहसब मूर्तिपूजाहीके भेद है.
( व्याख्यान मूर्तिपूजाका खतमहुवा,) छावनी-मुरारसे-उसीरौज वापिसलशकर आये, संगीतकलाका इल्म इस चौमासेमें भी हासिल करतेरहे, व्याख्यान धर्मशासका हमेशां वाचतेथे, और सभा अछी भरतीथी,
संवत् १९४९का-चौमासा-शहर लशकरगवालियर,
बादवारीश खतम होनेके लशकरसे रवाना होकर गवालिय. रकों तशरीफ लेगये, जोकरीव ( २ ) कोशके फासलेपर वाके है,
और किलाभी देखा उसमें पुराने शिलालेखथे-उनकी-नकल किइ, और वहांसे छावनी मुरारकों गये, और वहां चंदरौजठहरे, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे, और धर्मचर्चाके बारेमें हमेशां बहेसहोतीथी, छावनी मुरारसे फिर लशकर आये, और जब वहांसे दुसरे मुकामकों जानेका इरादा किया, वहांके श्रावकोने वास्तेठहरने अय्याम वारीशके बहुत आमिन्नत किइ, जिससे महाराज वहांठहरे, और संवत् (१९४९) की-वारीश-वहांपर गुजारी, व्याख्यानमें समवायांगमूत्र-और-विविधतीर्थकल्प बाचे, चंद्रप्रभा व्याकरण जो गइसालमें हिन्ज यादकरना शुरुकियाथा इसचौमासेमें पुरा किया. और-सम्मतितर्क-जो-आलादर्जेका जैनतर्क ग्रंथहै पढनाशुरुकिया, उपाशकदशांग-अंतकृतमूत्र-अनुत्तरो
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