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सवाने-उमरी. ( ७५ ) श्रावकोका खत आयाकि-आप-बराये महरबानी हमारे शहरमें तशरीफ लावे, और हमलोगोंको तालीम धर्मकी देवे. महाराजने उनकी अर्ज मंजुर किड और बुरान पुरसे रवाना होकर जेठदुसरे वदी तीनके रोज ब-सवारीरैल जबलपुर पहुचे, और संवत् (१९६१ ) की वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां करतेथे, कड मजहबके लोग-वास्ते मजहबी बहेसकों आते जातेथे, और धर्मचर्चाका फायदा हासिल करतेथे.-उपमितिभव प्रपंच-और-मेघमहोदधि-ग्रंथ-यहांपर वाचे,
( संवत् १९६२ का-चौमासा-शहर धुलिया,)
बादवाशिके जवलपुरमें रवानाहोकर-कटनी-विलासपुरचक्रधरपुर-और-आसनसोल होते वर्द्धमान टेशनको गये, कल्पसूत्रमें-जो-अस्थिक ग्रामका जिक्रदर्ज है-जहांकि-तीर्थकर महावीरस्वामीने-अवल चौमासा कियाथा-चो यही वर्द्धमान-(अस्थिकग्राम ) हैं, आजकल यहां कोई जैनश्वेतांवर मंदिर नही, सिर्फ ! जियारतका मुकामहै, वहांकी क्षेत्रस्पर्शनाकरके आसनसोल आये,
और बंगाल-नागपुर रैलमें--भुसावल जंकशनहोते पाचोरा टेशन उतरे, मोशमशर्मा वहां गुजारी. व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशांकरतेथे. पाचोरेसे रवानाहोकर बालापुर गये. और करीब तीन महिनके वहां ठहरे, व्याख्यानमें आवश्यकमूत्रवृत्ति-और-समरादित्यचरित बाचा, आषाढमहिनमे बालापुरसे रवानाहोकर शहरधुलिया आये और संवत् (१९६२) की वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान हमेशा करतेथे, किताव अजायब-हालात-जैन-और
आर्यसमाज, यहां बनाइ. अनेकांतजयपताका-योगशास्त्र-अध्यात्मविंदु-योगविंदु-और-योगदृष्टिसमुच्चयग्रंथ यहां वाचे, बादवारीशके मोशमशर्माभी वहां गुजारी, इनदिनोमें इरादा कियाकि-एक
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