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(४६ ) सवान-उमरी. तकी किसीमकानमें उतारीहुइ मौजूदहो-तो-वहांपें जैनमुनिकों ठहरना नहि चाहिये, उसका पाठ बतलायाजाता है देखिये !
(अध्ययन ८ मा-सूत्रदशवैकालिक, ) चित्तभित्तं-न-णिझाए-नारेवासुअलंकियं, भखरं पिव ठुणं-दिठी पडिसमाहरे,
इसका मतलब यहहैकि-जिसदिवारपर औरतका चित्रहोउसको मुनि-न-देखे. जैसेसूर्यकों देखकर अपनीनिगाह पीछीखेंचलिइजातीहै औरतके चित्रकों देखकर अपनीनजरकों खेंचलेवे. किसवास्तकि-उसतस्वीरकों देखकर असलीऔरतकी यादीआजाती है, सवालपैदाहोनेकीजगहहैकि-जिसहालतमें एक नाचीजऔरतकों देखकर खासऔरत याद आजावे, तो कया! तीर्थकरोकी मूर्ति देखकर खासतीर्थकरोंकी यादी-न-जायगी, ? इसमें कोइशकनही कि-तस्वीरदेखकर जोकि-खासशख्शहो-वह-जरुरयाद आजाता है, अगर कहाजाय मूर्तिपूजा करनेसें जीवोंकी हिंसाहोती है-तोक्या स्थानक बनानेमें हिंसा नहींहोती, मुनिमहाराज एकशहरसे दुसरेशहर जाते रास्तेमे किसीनदीमें होकर पारहोते है-तो-क्या पानीकेजीव नहीमरते है ? भिक्षाकेलिये जानेमेंभी हवाकेजीव अपने शरीरसे मरतेहै, जबकभी किसीकों दीक्षादिइ जाती है तो जलसा कियाजाता है उसवख्त सेंकडो आदमीयोंकी भीडभाडसें रास्तेमें सूक्ष्मजीवोंका नाशहोताहै इसकों क्या जीवहिंसा नहीसमझते ? सिर्फ मूर्तिपूजाहीकों जीवहिंसा समजतेहो, ? अनुयोगद्वारसूत्रमें चार निक्षेपे बयानफरमाये उसमें स्थापना निक्षेपा मूर्तिको सबुती देताहै,
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