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( ३६२ ) नसीहत-उल-आम. अगर कोइ साज-और-संगीतकलाका जाननेवालाहो-तो-बाजेके शाथ उमदातौरसे गायनकरे और तीर्थंकरोंकी इबादतकरे, पूजनमें इरादा पाकहोनेके सवव भावहिंसा नही. और विनाभावहिंसाके पापनही, पाकइरादेसे तीर्थकर देवोकी पत्तिकी पूजाकरनेसे अशुभकमंकी निर्जरा और पुन्यानुवंधिपुन्य हासिलहोताहै, धर्म और प्रीत जोरावरीसे नहींहोती, जिसकेपर देवद्रव्य का पैसाहो फोरन ! देदियाकरे, जो लोग नहीदेते गोया ! अपना विगाडकरतेहै, धर्मकेकाम में दगाबाजी करना अछानही,
४-अगर शहरमें अपने मजहबी गुरु आयेहो तो व्याख्यान सुननेकों जरुरजाना चाहिये, जिसशख्शने देवपूजन-न-कियाहो
और शास्त्रसुननेका वख्न करीब आजाय तो पहलेशास्त्र सुने और पीछेदेवपुजनकरे , क्योंकि-वगेर शास्त्रमुने देवपुजनकी पहिचानठीक नहींहोती, मुनिलोगोको चाहियेकि-कोई अमीर हो-या-गरीब दोनोको एकसागिने, जैसा-न-करेकि-कहीं दोलतमंदकी तर्फ ज्यादह तवज्जोकरे और गरीवकों-न-पुछे, पेस्तरके मुनिलोग शहरके बहार उद्यान-या-बनखंडमें रहाकरतेथे जवकोइ जैनमुनि शास्त्रका व्याख्यान बाचरहेहो, और उसहालतमें कोइश्रावक व्याख्यानमें आनकर वंदनाकरे मुनि उसको धर्मलाभ-न-दवे, क्योंकिव्याख्यानमें खलल होगा, चलते व्याख्यानमे श्रावक स्फेटावंदना करे, स्थोभ-वंदना-न करे, जबतक शास्त्रकी बाजा -न-होवीचमें कोइ उठेनही. ओर अगर कोई किसीको गुलानेआवे-तोमुहसे कुछ-न-बोले, इसारेसे उसकाजबाव देवे, अगर किसीकेघर कोइ मोत होगइहो-या-किसी किसमका सोगहो-तोभी-शास्त्र सुनने सोग-न-रखे, एकश्रावकका नवजुवान लडका रातकेवख्त गुजरगया, और शुभहके वख्त उसके देहका अग्निसंस्कार करके कुछदे
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