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तवारिख-तीर्थ-वितभयपत्तन. (१९३ ) नहीथा,-पीछेसे जैन मजहषपर पावंदहुवा, उसकी पटरानी प्रभावती पेस्तरसेही जैन मजहबसे ताल्लुक रखतीथी जोकि-विशाला नगरीके चेंडा राजाकी बेटीथी. जब-गांधार नामका श्रावक जैन तीर्थोकी जियारत करताहुवा यहां आयाथा, उसके साथ तीर्थकर महावीर स्मामीकी चंदनमय मूर्तिथी, राजा उदयनके दरबारमें उसकी बडी तारीफहुइ, गांधार श्रावकने खुशहोकर वहमूर्ति-राजा उदयनकीरानी प्रभावतीकों दिइ, और प्रभावतीने अपने जेबखर्चसें एकबडा आलिशान मंदिर बनवाकर उसमें-वह-मूर्ति तख्तनशीन किइ, हरहमेश उसकी पूजन करतीरही, जब प्रभावतीने-दुनीय वीकारोबार छोडकर दीक्षा इख्तियार किइ, और उसका इंतकाल हुवा, उज्जेनका राजाचंडमद्योत पोशिदगीसे वीतभय पतनमें-आया और एक स्वर्ण गुलिका दासी-और-उसमूर्तिकों उज्जेन लेगया, जब उदयनकों यहबात मालूम हुइ बडी फौजलेकर चंड प्रद्योतका पीछा किया-मारवाडके रास्ते मुल्क मालवेमें जाकर शहर उज्जैन को घेरा, चंड प्रद्योतभी बडी तयारीसे सामने आया और दोनोंका जंगहुवा, आखरीश-चंड प्रद्योतने सिखस्तखाइ, और उदयनकी फतेहहुइ,-इस किस्सेका कुछ हिस्सा उज्जेनकी तवारिखमें बतलायगें, यहांइतनाही लिखना काफी हैकि-उदयनकी फतेह हुइ और अपनेवतन वितभय पत्तनकों लोटआया,
भैरेकस्बेकी मर्दुमशुमारी ( १७४२८) मनुष्योंकी--बाजार रवन्नकदार-और-हरेक किसमकीचीजें यहांपर मिलसकती है, पेस्तर जैनश्वेतांबर श्रावक यहां बहुतथे, मगरदिनपरदिन कमहोते गये, थोडे अर्सेकी बातहै दोचार श्रावकथे-मगर-वेभी . शहरगुजरानवाल तर्फ चलेगये, एक-जैनश्वेतांवर मंदिर यहांपर मौजूदहै, और एकपूजारी तैनातहै, आये गये यात्रीयोंसे खर्चचलताहै,
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