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(१८) तालीम-धर्मशास्त्र. जाकर जीव संसारसमुंदरसे तीरे, मगर जिसशख्शका इरादापाक नहींहै उसकों तीर्थभी-न-तारसकेगा, दौलत आजहै और कलनहोगी जोकुछधर्मकार्य करनाहो जल्दी करलो. दुनियाकेझगडोंका कभी-पार-नहीआता. जोकुछ धर्मकामकरलोगे वहीतुमाराहै, कइ शख्श मरतेवख्त कहतेजातेहै हमकों-फलाने दोकामकरना बाकी रहगये, लेकिन ! यहकोइ नहीकहताकि-हमकों फलानेतीर्थकी जियारतकरना बाकीरहगइ, तिजारतके लिये तुमऐसीजगहघूमे जहांकि-जानबचाना मुश्किलथा, लेकिन ! तीर्थयात्राकेलिये एकदफेभी नहीघूमे, कइलोग कहते है तीथोंकी जियारत हमारेतकदीरमेंनही. कैसेजाय, ? मगर यहनहीं सोचतेकि-हमने-घरसे एककदमभी नहीं उठाया और कहदिया हमारेतकदीरमेंनहीं, क्या ! खूवढंगहै, ? दौलतमिलानेकेलिये हरजगहजानेकी ततवीरकरना और तीर्थयात्राके लिये तकदीरका बहानालेना, वडेहोशियार हो. निश्चयनयकोंदिलमेंरखकर व्यवहारनयसें वर्तावकरना तमामशास्त्रोकासारहै.__ आजसें करीब (२५००) अढाइहजारवर्ष पेस्तर जवकि-तीर्थकरोंका जमानाथा विद्याधरलोग अपनीविद्याकी शक्तिसें आस्मानमें विमानचलातेथे, और उसकेजरीये लोग सफरकरतेथे, आजकल रैलकासाधन मौजुद है, फिरसुस्तीकरना और तकदीरकाबहानालेना-कोइअकलमंदीकी वातनही, करीब सो-सवासोवर्ष पेस्तर जबरैलनहींथी-लोग-खुश्कीरास्ते सफरकरतेधे, औरबहुतसाखर्च करनेपरभी उतनीजगह-नही जासकतेथे-जितनी आज थोडेखर्चसे जासकतेहो. जिनकोंधर्म प्याराहै-कभी-सुस्तीनहीकरते, तीर्थयात्राकोंजानेसे पेस्तर इसबातकों अवलसौचलोकि-तुमारेपास उतना खर्च है-या-नही, ? गेरमुल्कमें किसकिसकेपास मांगतेफिरोगे. ? जिसराजे-महाराजेकी अमल्दारीमें तीर्थकीजगहहो-उनकों-इसबा
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