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________________ तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. (५७) तैजहै-तो-दौलतफिर आनकर मिलेगी, धर्ममेंबखीलहोना कोइजरुरतनहीं, जबदौलत झलाझलहै-तो-खर्चकेलिये क्यौंचुपरहजातेहो, इतबाररखो धर्मपर, हकीकतमें सवधर्महीकाफलहै. अंधेरकारीकी तरहसवकों एकभाव--न--समझो. दरयाफतकरलो दौलत और धर्म इसमें कौनबडाहै ? धर्मकोंभुलगये जभीतो यह तकलीफ हासिलहुइ खेर ! कोइमुझाखानही. आदमीकुछखोकरही सीखता है, मुमकीनहै कुछधर्मकीराहपरदेना, दौलतचंदरौजकी है और धर्म हमेशांकाशाथी है, अगरशुभहका सिताराआफताबके आगेचलेतो वह आफतावनहींहोसकता, रिस्तेदारोकी तकरारकानिवेडाकिया मगरअपनानिवेडा कवकरोगे? तीनहिस्साउमर बतीतहोगइ मगर परलोककारास्ता साफनहीकिया, जोकुछधर्मकामकरनाहो, पीछेमतरखो, न-मालूमकिसवख्त क्याहोजाय ? दौलतखाना-मकान औरलडके तुमारेसामने तयारहुवे, बुजुर्गोका कहनाहै धर्मकरो! नसीहतकेवख्त हसदेतेहो यहएकगुनाहहै, दावतमेंसबलोग आतेथे मगरवीमारीकेवख्त कोइपासतकनहीआया, कोइआदावअर्ज कहनेवालेभी नहीआये, अवतीर्थमेंआयेहो पनाहलो ! देवगुरुधर्मकी और इबादतकरो तीर्थकर देवोंकीजिससे तुमारादुखसे निस्ताराहो, बाग बगीचे इतरफुलेल--उमदापुशाक और खर्चआमदनीका हिसाब मिलाते जिंदगीतयहुइ, जिसनेतुमारेशाथ नर्ददगाकीखेलीथी-भी-चलेगये, वफादारबेवफाहुवे, नोकरचाकर जवाबदेगये, अखबारपढनेका शौखथा-चहभी दौलतकीतंगीसे कमहुवा, कोइभीमुराद हासिलनहीहुइ, अबतो यकीन लाओ! धर्मपर, बडेबडेखुशनसीबधर्महीसे पारहुवे, खजानाखुश्कहुवा. जवानीपायमालहुइ, सलामतहै Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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